ग़ज़ल
डेरा हर तरफ़ भूख और बेबसी ने डाला हैं,,
खुदा के कर्म से मेरी थाली में निवाला हैं !!
क़दम जो डगमगाए मेरे दुनिया की बातों से,,
हमें बस दोस्तों की मोहब्बत ने संभाला हैं !!
फ़र्ज़ के रास्तें में जब जब बंदिगी आयी ,,
मीरा के हाथ में तब तब ज़हर का एक प्याला हैं !!
न जाने क्यों शहर में मेरे आग लगी सी हैं,,
गली में आज भी मेरी मस्जिद के पास शिवाला हैं !!
सियासत जैसे हो बिल्ली न ठोर न ठिकाना है ,,
बचाये आँख जनता से और कहते शेर की ख़ाला हैं !!
गोरा लिबास जिसका सियासत वंशधारी जो,,
उन्हीं महलों के नीचे से बहता लहू का नाला हैं !!
— पूजा बंसल
बहुत सुन्दर गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..
बहुत खूब .