दातुन ही नहीं, उपयोगी हैं टूथपेस्ट और टूथब्रश भी
एक सज्जन से मिलने जाना हुआ। पहले पानी और उसके बाद चाय आई। चाय सिर्फ़ एक कप ही थी। मैंने मेज़बान से पूछा, ‘‘आप चाय नहीं लेंगे?’’ ‘‘मैं चाय-काॅफी, बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटका, शराब, तम्बाकू आदि कोई ग़लत चीज़ नहीं लेता,’’ मेज़बान ने बड़े गुरूर के साथ फ़र्माया। ‘‘अच्छी बात है आप कई बेकार की चीज़ों से परहेज़ रखते हैं लेकिन चाय-काॅफी की तुलना बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटके, शराब, तम्बाकू आदि चीज़ों से करना मेरे विचार से उचित नहीं, ’’ मैंने किंचित प्रतिवाद किया। प्रतिवाद स्वाभाविक भी था क्योंकि ये पूर्ण सत्य नहीं। मैं किशोरावस्था से आज तक ख़ूब चाय पीता रहा हूँ लेकिन मैंने कभी इसका दुष्प्रभाव नहीं देखा।
जहाँ तक हमारे चाय-काॅफी आदि के आदी होने की बात है तो हम जो भोजन करते हैं उसके भी हम आदी ही होते हैं। आप छाछ पीने या गेहूँ की रोटी खाने के आदी हैं तो इसका ये अर्थ तो नहीं कि अन्य सभी पेय पदार्थ या चावल, मक्का, जवार, बाजरा आदि खाद्य पदार्थ हानिकारक ही हैं। कोई चावल अथवा मक्का को बुरा बतलाता है तो गेहूँ को। दूध एक संपूर्ण आहार है। दूध को सभी उत्तम भोजन में सम्मिलित करते हैं लेकिन डाॅ0 एन.के.शर्मा अपनी पुस्तक ‘‘ दूध: एक धीमा ज़हर ’’ में दूध में सिर्फ़ अवगुण ही देखते हैं। वैसे एक निश्चित मात्रा तक अल्प मात्रा में विष भी औषधि का कार्य करता है तो फिर कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति अत्यधिक पूर्वाग्रह क्यों? यदि चाय के दुष्परिणामों पर वास्तव में कोई शोधकार्य हुआ है तो कृपया मुझे भी बतलाने का कष्ट करें।
सभ्यता के विकास के साथ-साथ न जाने कितनी चीज़ें हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गईं। माना कुछ चीज़ें बाज़ारवाद के कारण जबरदस्ती हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गई हैं लेकिन इसके बावजूद हर एक चीज़ को हानिकारक, अनुपयोगी अथवा निरर्थक नहीं कहा जा सकता। कुछ वस्तुएँ हमारी दिनचर्या में इसलिए शामिल हैं क्योंकि वे हमारे लिए वास्तव में उपयोगी हैं। आप कितने लोगों को जानते हैं जिन्हें चाय अथवा काॅफी से कैंसर, टीबी या अन्य घातक बीमारी हो गई हो जबकि बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटके, शराब अथवा तम्बाकू से हज़ारों नहीं लाखों मौतें हर साल होती हैं। हानिकारक पदार्थों से बचना श्रेयस्कर है न कि किसी भी पदार्थ पर हानिकारक का ठप्पा लगाना। मैं पूर्णतः शाकाहारी हूँ लेकिन मेरी चुनी हुई सरकार में अनेकानेक लोग मांसाहारी हैं और देश में मांस के उपभोग पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। तो क्या इसी आधार पर इस सरकार और मांसाहारी लोगों को खारिज किया जा सकता है? कदापि नहीं।
कुछ लोग चाय-काॅफी के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं तो कुछ साॅफ्ट ड्रिंक्स के पीछे लट्ठ लिए घूमते हैं। कई लोग कहते हैं कि इन साॅफ्ट ड्रिंक्स में कई घातक रसायन होते हैं जो हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं। उनके अनुसार इन साॅफ्ट ड्रिंक्स में इतने तेज़ रसायन होते हैं कि उनसे टायलेट का मैल भी साफ हो जाता है। वैसे नींबू के बारे में आपकी क्या राय है? नींबू से भी हर प्रकार की ज़िद्दी चिकनाई और मैल साफ़ किए जाते हैं। मेरा अनुभव है कि इन बेचारे बदनाम साॅफ्ट ड्रिंक्स की अपेक्षा कई डिब्बाबंद प्राकृतिक फलों के जूस अधिक घातक हैं। बाज़ार में बिकने वाले सभी सिरके पूरी तरह से कृत्रिम रासायनिक पदार्थ हैं। मैगी का हाल आप देख ही चुके हो।
इसी प्रकार कुछ व्यक्ति टूथपेस्ट और टूथब्रश के बहुत ख़िलाफ़ हैं। उनके अनुसार टूथपेस्ट और टूथब्रश हमारे दांतों और स्वास्थ्य दोनों को हानि पहुँचाते हैं। टूथपेस्ट में उपस्थित हानिकारक रसायनों से दंतक्षय प्रारंभ हो जाता है। उनके अनुसार यदि टूथपेस्ट को टायलेट में लगा दें तो कुछ देर बाद उससे टायलेट का मैल भी साफ हो जाता है। ये कुतर्क या तर्काभास है। हमारे भोजन में अनेक ऐसी चीज़ें हैं जिनसे मैल साफ हो सकता है। जौ के आटे, बेसन तथा हल्दी आदि से तैयार उबटन का प्रयोग हम अपने शरीर का मैल साफ़ करने के लिए ही तो करते हैं। क्या इन वस्तुओं को भी खाना छोड़ दें? मैं हमेशा साधारण पानी तथा ब्रश से स्वयं अपना टायलेट साफ़ करता हूँ। पानी से मल साफ़ भी हो जाता है और बह भी जाता है तो क्या हम पानी पीना भी छोड़ दें?
वास्तव में दंतक्षय का कारण टूथपेस्ट या टूथब्रश नहीं। सफ़ाई अच्छी बात है लेकिन कई लोग दाँतों की बहुत अच्छी प्रकार से देखभाल नहीं करते फिर भी उनके दाँत ठीक हैं और मोतियों की तरह चमकते रहते हैं जबकि कुछ लोग दाँतों की सफ़ाई का कितना ही ध्यान रखें उनके दाँत कभी ठीक नहीं रहते। दंतक्षय का कारण बाह्य नहीं आंतरिक होता है। प्रायः अनुवांशिक कारणों तथा दूषित पेयजल के कारण ही दाँत ज़्यादा ख़राब होते हैं।
दातुन से दाँत साफ़ करने में कोई बुराई नहीं बशर्ते कि दातुन करनी आती हो। कई लोग दातुन से दाँतों की सफ़ाई करने की बजाए दातुन से रगड़-रगड़कर दाँतों को ख़राब ज़्यादा कर लेते हैं। जिन लोगों के दाँतों में कैवेटीज़ होती हैं वे दातुन करेंगे तो उनको ज़्यादा दिक़्क़त होगी क्योंकि दातुन के रेशे उनके दाँतों और मसूढ़ों में फंस जाएँगे। दातुन के मुक़ाबले टूथपेस्ट और टूथब्रश से दाँतों और मसूढ़ों की अच्छी मसाज और सफाई संभव है।
टूथपेस्ट ही नहीं टूथपाउडर या दंतमंजन भी दाँतों और मसूढ़ों की सफ़ाई के लिए अच्छा विकल्प हैं। टूथपाउडर या दंतमंजन एकदम बारीक पिसे होने चाहिएँ नहीं तो दाँतों और मसूढ़ों दोनों को नुक़सान पहुँचेगा। जहाँ तक मुँह की दुर्गंध की बात है यदि दाँतों अथवा मसूढ़ों की कोई बीमारी है या पेट साफ़ नहीं है तो मुँह की दुर्गंध न तो दातुन से जाएगी और न टूथपेस्ट, टूथपाउडर या दंतमंजन से ही। उसका अन्य अपेक्षित उपचार अनिवार्य है। इसी प्रकार जो चीज़ें हमारी संस्कृति के अनुकूल नहीं हैं उनको अपनाने से परहेज़ किया जा सकता है, उन सबको ग़लत सिद्ध नहीं किया जाना चाहिए।
— सीताराम गुप्ता
सीता राम जी , लेख अच्छा लगा . जो बातें मैं कहता रहता हूँ आप ने सारी बातें कह दीं. हर एक इंसान का अपना अपना इमिऊन्न सिस्टम है .मेरी पत्नी जो मर्ज़ी खा ले उस का वज़न १३० पाऊंड ही रहता है ,मैं उस से कम खाता हूँ फिर भी सारी उम्र वेट कंट्रोल में गुज़ार दी लेकिन वेट कम होता ही नहीं . हर तीसरे दिन एक वजे सलाद कि भरी हुई प्लेट खाता हूँ ,हर तीसरे दिन एक वजे सिर्फ फ्रूट ही खाता हूँ .एक रोटी खाता हूँ और हर रोज़ डेढ़ घंटा ऐक्सर्साइज़ करता हूँ लेकिन वज़न अगर कम हो भी जाए तो थोड़ी सी मठाई खाने से वज़न फिर वहीँ आ जाता है . मैं ७२ का हूँ .ब्रश करता रहा हूँ और कुछ दांत निकाल भी दिए गए लेकिन अभी भी अपने दांतों से ही खाता हूँ .मेरी पत्नी ६९ की है और उस के दांत मोतिओं जैसे हैं ,एक भी नहीं निकाला गिया ,खुराक हमारी दोनों की एक ही है . रही बात चाए की तो यहाँ तो इतनी चाए पीते हैं कि उतनी भारत में नहीं पी जाती . बहुत देर हुई एक गोरा मुझे मिला था और हंस रहा था कि उस दिन्वोह ९५ का हो गिया था ,तो जब मैंने उस से पुछा कि किया वोह मीट खाता था तो हंस कर कहने लगा ,” सारी जिंदगी हर रोज़ किसी न किसी फोरम में मीट खाता चला आ रहा था “. इस को हम किया कहें ?