पुस्तक समीक्षा

बचपन की दहलीज़ पर

मेरी नज़र में अमन चाँदपुरी, साहित्य जगत के उभरते हुए कवि और लेखक हैं। मैं इन्हें युवा कवि भी नहीं कह सकती। क्योंकि इनकी उम्र अभी सिर्फ सत्रह साल है, लेकिन इतनी अल्प आयु में वैचारिक तौर पर इतना परिपक्व मैनें विरले लोगों को ही देखा है।

अमन ने छोटे से जीवन में ही अनुभवों को विस्तार से समेटा है। शुरुआत ही देखिए, कवि हाथों की लकीरें पर विश्वास नहीं करते, और उन्हें बासी लकीरें नाम से सम्बोधित करते हुए लिखते हैं –

‘बड़े होते ही मैनें
उन सभी बासी पड़ी लकीरों को
उतार फेका
खुद नई-नई
और ताजा लकीरें बनाने के लिए’

उपरोक्त पंक्तियाँ कवि की कर्मशीलता का बख़ूबी बखान करती हैं।

इतनी छोटी-सी उम्र में जब बच्चें खिलौनों से खेलते हैं, वहीं अमन बुजुर्गों की गीली आँखों में अनुभव का खजाना ढूढ़ लेते हैं, और खुद से कहते हैं –

‘बुज़ुर्ग की आँखें
अनुभव का सागर
अमन,
भर लो गागर’

इस अनुभूति ने मेरे अंतर्मन मन को स्पर्श किया है।

इनमें समाज के प्रति जागरुकता हैं। कन्या भ्रूण-हत्या और घरेलू महिला उत्पीड़न पर उनकी क्षणिका ‘स्त्री’ गम्भीर कटाक्ष करती है, ये लिखते है –

‘अब न छुओ
बिला जाओगे
मैं न रही
तुम कहाँ से आओगे’

अमन असीम प्रतिभा के धनी हैं, इनके अपने सपनें हैं, जिज्ञाषा हैं, परिवर्तन करने की कोशिश है। इनमें प्राणी मात्र का दर्द महसूस करके बयाँ करने की क्षमता है। इनकी नज़र पारखी है, दूरदर्शी है, दूरगामी है।

जीवन की पहली सीढ़ी पर ही ये मृत्यु से संवाद करते हुए कहते हैं –

‘आज नहीं
कल नहीं
परसो भी नहीं
तुम मुझसे मिलने
आना ही नहीं।’

अमन की सभी रचनाएँ एक से बढकर एक हैं। सीमित शब्दों में बड़ी बात कहना कठिन होता है, लेकिन अमन को इसमें महारत हासिल है। मैं अमन की रचनाओं से बहुत प्रभावित हूँ। अमन ने अपनी रचनाओं पर मुझे कुछ लिखने का मौका दिया, इसके लिए मैं इनकी शुक्रग़ुजार हूँ। अमन आने वाले समय में दुनिया को बहुत कुछ देंगे ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।

– प्रेरणा सारवान
कवयित्रि एवं हाइकुकार
28 जून 2015
अजमेर, राजस्थान

क्षणिकाएँ-

(1)
‘परिवार’

परिवार के लिए
कुछ लोग
बेच देते हैं
आँखों की नींद
मन का चैन।

(2)
‘अलाव’

तेज हवाओं से
रात भर
खौफ खाता रहा अलाव
सोचा —
ठंडक में गर्मी दूँ
या खुद को ठंडक से बचाऊँ।

(3)
‘बुजुर्ग’

बुजुर्ग की आँखें
अनुभव का सागर
अमन,
भर लो गागर।

– अमन चाँदपुरी

अमन चांदपुरी

परिचय – मूल नाम- अमन सिंह जन्मतिथि- 25 नवम्बर 1997 पिता – श्री सुनील कुमार सिंह माता - श्रीमती चंद्रकला सिंह शिक्षा – स्नातक लेखन विधाएँ– दोहा, ग़ज़ल, हाइकु, क्षणिका, मुक्तक, कुंडलिया, समीक्षा, लघुकथा एवं मुक्त छंद कविताएँ आदि प्रकाशित पुस्तकें – ‘कारवान-ए-ग़ज़ल ‘ 'दोहा कलश' एवं ‘स्वर धारा‘ (सभी साझा संकलन) सम्पादन – ‘ दोहा दर्पण ‘ प्रकाशन – विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब पर सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित सम्मान – प्रतिभा मंच फाउंडेशन द्वारा ‘काव्य रत्न सम्मान‘, समय साहित्य सम्मेलन, पुनसिया (बांका, बिहार) द्वारा 'कबीर कुल कलाधर' सम्मान, साहित्य शारदा मंच (उत्तराखंड) द्वारा ‘दोहा शिरोमणि' की उपाधि, कामायनी संस्था (भागलपुर, बिहार) द्वारा 'कुंडलिया शिरोमणि' की मानद उपाधि, उन्मुख साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था द्वारा 'ओमका देवी सम्मान' एवं तुलसी शोध संस्थान, लखनऊ द्वारा 'संत तुलसी सम्मान' से सम्मानित विशेष - फोटोग्राफी में रुचि। विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं तथा वेब पर फोटोग्राफस प्रकाशित पता – ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर तहसील- टांडा, जिला- अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)- 224230 संपर्क – 09721869421 ई-मेल – [email protected]

2 thoughts on “बचपन की दहलीज़ पर

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा परिचय

  • Roney Onenophile

    अमन के विषय में हर शब्द सत्य कहा। मुझे लिखते हुए 15 साल हो गये। लेकिन अमन नवरचनाकार होते हुए भी मुझसे बहुत आगे है, ऐसा मैने उसको कहा भी था। सचमुच आने वाला समय उसी का है। – Roney Oenophile

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