“भर दो, मांग मेरी”
इस बेटी की ऐसी तो किस्मत कहाँ
कठपुतली है मेरी, जरुरत तुम्हारी
बाबुल का घर मेरी आँगन सगाई
ये मेहंदी है मेरी, जरुरत तुम्हारी ||
शिकवा करें ना शिकायत करें
ना खिलने में कोई रियायत करें
खनकेगी इशारों पे हरदम सनम
यें चूड़ी है मेरी, जरुरत तुम्हारी ||
इस बेदी पर बैठी हूँ घूँघट तलें
अरमानों को अपने दबा कर गले
मेरा मंडप सुहागन जो हों जायेगा
यें शादी है मेरी, जरुरत तुम्हारी ||
देखा न परखा न जाना तुम्हें
है सिंदूरी रस्में निभाना हमें
इस चादर महावर में जीवन कहाँ
यें अर्थी है मेरी, जरुरत तुम्हारी ||
चाहों जिधर संग आएगी यें
दे दे दहेज घर बसाएगी यें
टिका सुहागन मांग-माथे का गहना
यें कोरी मांग मेरी, जरूरत तुम्हारी ||
भर दो मांग मेरी, जरुरत हमारी…….
महातम मिश्र