बड़ी होती लड़की
बड़ी होती लड़की
बिन्दास थी
उफान थी
तूफ़ान थी
घूरती निगाहों ने
बना दिया उसे
घबरा घबरा
कर हकलाते हुये
चलने वाली लड़की
माँ पिता जी की नसीहतें
उसके लिये कभी ख़त्म
ही नहीं हो पाई
तुम लड़की हो . . .
बस ये ही रटाती थी माँ
बड़ी होती लड़की
हरफनमौला थी
उड़ती तितली थी
फूलों की खुशबू थी
अश्लील तानों ने
बाँध दिये पंख उसके
छूने की अनाधिकृत
कोशिश मनचलों की
लील गये खुशबू उसकी
बड़ी होती लड़की
मासूम थी
बेखौफ थी
जीवंत थी
सारी सरहदें
उसी के लिये
हँसी को क़ैद कर
मासूमियत को
खो बैठी
बड़ी होती लड़की
पीढी दर पीढी
चली आ रही
रोक टोक ने छींटाकशी ने
बदल दी वो बड़ी होती लड़की
माय चॉइस का नारा देती
वो बड़ी होती बदलती लड़की
— अंजलि “अंजुमन”