कर्तव्य
लोग अपने कर्तव्य से
क्यो विमुख हो जाते है,
भूल जाते है वो
अपनी सारा कर्तव्य
जो उसे निभानी होती है
जैसे ही उसे मिल जाती है
उसकी हाथो मे वो सता
फिर वो करने लगते है
अपनी वही मनमानी
किसी भी क्षेत्र मे
मिलती है यही देखने को
हम. भी वही देखे है
जो चलती आ रही सदियो से
कब तक चलती रहेगी ए
सबकी अपनी मनमानी
आखीर इसका अंत
क्यो नही हो रही है !
…..निवेदिता चतुर्वेदी……
यही विडम्बना है आदरणीया निवेदिता चतुर्वेदी जी, कर्म स्थान पर आकर लोंग कर्तव्य भूल जाते और मोड पर आकर रिश्ता, उत्तम रचना सादर बधाई…….
बेहतरीन कविता। सुंदर भाव। बधाई !!