आखिर क्यों
बदलते रुत की हवायें,
हल्का सर्द एहसास ,
लिये मेरे कमरे में ,
आई है!
साथ ही कुछ भूले बिसरे,
पलों की यादें कैद कर,
लाई है
जिन्होनें मेरे अंतर्मन में
हलचल सी मचा दी है!
एक चिर-परिचित सी,
खुशबू हवाओं को ,
महका गई है!
जब तुम पास होते,
तो अकसर में तुम्हें,
कहती ,कि ये खुशबू
मुझे बहुत पसन्द है
और तुम ढ़ेर सारा
इत्र मुझ पर झिडक
दिया करते .
और एक दिन
अचानक तुम मेरी
जिंदगी से दूर चले
गये आखिर क्यों??
इसका जबाब में
आज भी ढूँढ
रही हूँ….
…राधा श्रोत्रिय”आशा”
बहुत खूबसूरत कविता !