गजल
सब बीजों में पेड़ों के आसार लिखो
झरनों पर भी सागर सा विस्तार लिखो
सारी खुशहाली है दौलतमंदों की
मुफ़लिस के घर भी कोई त्योहार लिखो
बेकारी की चक्की ने है यों पीसा
कितने जिंदादिल हो गए बीमार, लिखो
पार समंदर जब उतरे तो हैरां थे
साहिल पर है कैसी ये मझधार, लिखो
मत चलने दो तूफानों की मनमानी
अब मौजों पर फौलादी पतवार लिखो
छुट्टी के दिन भी क्या आपाधापी है
मशरूफी से खाली इक इतवार लिखो
——- पूनम
सुंदर