कविता

त्रासदी

तूफान थम गया
या दम थम गया
दोनो ही
तूफान जब नही था
तब दम तूफान मचाता था
ऊँगली के ईशारे पर
सबको नचाता था
पर तूफान आते ही
दम थम गया
अब तूफान थम गया
और दम भी थम गया
बहुत देर तक राह देखा
केवल बनती रही पानी पर रेखा
चारो तरफ सन्नाटा है
सूनसान है मुहल्ले की गलियाँ
बिखरी पडी है चारो तरफ
अधखिली कलियाँ
कौन किसे सम्भाले
जब सबका एक ही हाल है
राजा हो या रंक
सबका एक ही सवाल है
सभी एक संग
एक ही विस्तर पर
सोने को मजबूर हैं
कौन किससे शिकायत करे
सब के सब चकनाचूर है
किसके खींसे में क्या पडा है
ताजा है कि सडा है
कोई नही पूछता है
किसी को कुछ भी नहीं सूझता है
अब तो सब मिलकर एक हो गये हैं
नियति के आगे सभी रेत हो गये हैं

कन्हैया प्रसाद तिवारी

परिचय कन्हैया प्रसाद तिवारी भूतपूर्व वारंट अफिसर भारतीय वायु सेना पता हथडीहाँ रोहतास बिहार

One thought on “त्रासदी

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब, पं. जी !

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