कविता

आखिर हम भी एक इंसान है

एक फौजी की आत्म कथा..

सरहद पर जब हम भारत माता की रक्षा के लिए तैनात होते हैं
उस वक़्त हम भी अपने परिवार से मिलने वाले हर एक प्यार का तलबगार होते है

हम भी एक इंसान है हमे भी अपने घर की चिंता सताती है …?
आखिर कौन बताये गा हमे की कैसी है मेरी बूढी माँ कैसे घर में रोटिया पकाती है..
ना जाने कैसे मेरे बूढ़े बाप अकेले खेतो में हल चलाते होंगे
आखिर कौन पिलाता होगा उन्हें पानी जब वो हल चलाते चलाते थक जाते होंगे

मेरी पत्नी जो मेरे प्यार को पाने की राह देख रही है
जाने कैसे वो अपने प्यार को रोक रही है

इतना कुछ तकलीफो के सहने के बाद भी हम सरहद पर बेखोप तैनात है
जब की मैं जानता हु मेरी जिंदगी के दो मासूम (मेरे छोटे छोटे बच्चे)
अभी नहीं हमारे पास है.

अचानक कही से एक मौत का सैलाब आता है
उसके बाद मेरा एक साथी सरहद पर लड़ते लड़ते अपने प्राण गांव देता है

बस उसी वक़्त मैं अपने घर वालो को याद कर थोड़ा आंसू बहा देता है
मेरे मर जाने के बाद कोन संभालेगा गा उन सब को यही सोच कर थोड़ा घबड़ा जाता हु,

उस वक़्त मेरा जो दर्द समझ सके ऐसा कोई भी नहीं मेरे पास होता है
सरहद पर जब हम भारत माता की रक्षा के लिए तैनात होत्ते है..

अखिलेश पाण्डेय

नाम - अखिलेश पाण्डेय, मैं जिला गोपालगंज (बिहार) में स्थित एक छोटे से गांव मलपुरा का निवासी हु , मेरा जन्म (23/04/1993) पच्छिम बंगाल के नार्थ चोबीस परगना जिले के जगतदल में हुआ. मैंने अपनी पढाई वही से पूरी की. मोबाइल नंबर - 8468867248 ईमेल आईडी [email protected] [email protected] Website -http://pandeyjishyari.weebly.com/blog/1