तुम्हारी रचनायें ……….
तुम्हारी रचनायें
मैं आज भी बड़ी लगन से पढ़ता हूँ
और पागल हो जाता हूँ
उस हर एक रचना में
जिसमें तुम किसी के लिये
अपने प्रेम का इज़हार करती हो
मैं अपनी कल्पना में
वो पात्र बन जाता हूँ
फिर बह जाता हूँ
अपने मनभावन भावनाओं में
एक बार फिर ऐसा लगता है
जैसे पतझड़ के बाद
एक ठूंठ से हुए पेड़ पर
नयी कोपलें फूटने लगी हैं
फिर एक बार इन्तहा हो जाता है
फूलों और बेशुमार हरी पत्तिओं का
और मैं जी लेता हूँ वो
मिलन के पल
जो हमने एक साथ कभी गुजारे थे
एक बार फिर जीवित हो उठता हूँ
मैं अपने शव आसन से
हे प्रिये……
तुम लिखती रहो
करती रहो अपने प्रेम का इज़हार
और मैं जी लूँगा
हर वो पल जो अब मेरा नहीं है……
……..मोहन सेठी ‘इंतज़ार’