क्या जरूरत थी तुम्हे..?
क्या जरूरत थी तुम्हे मेरी जिंगदी में आने की,
मेरी खुशियों की दुनीया में गम की चादरें बिछाने की…?
क्या जरूरत थी तुम्हे मुझ पर इतना जयादा हक़ जताने की
फिर दे के चंद खुशिया उम्र भर रुलाने की…?
बिना पूछे जिंदगी में आना और बिना बताये चले जाना,
रोज शाम को बगिया में अपने मीठी – मीठी बातो में मुझे लुभाना
और एक शाम युही तन्हा छोर के चले जाने की,
आखिर क्या जरूरत थी तुम्हे मेरी जिंदगी में आने की…?
क्या जरूरत थी तुम्हे हर रोज मुझसे मिलने आने की,
अपनी कोयल जैसी आवाज सुनाने की,
अपनी जुल्फों को मेरे चेहरे पर बिखराने की,
कुछ वक़्त प्यार जाता कर फिर चले जाने की,
क्या जरूरत थी तुम्हे मेरे जिंदगी में आने की…?
मेरे दिल में खुद के लिए इतना प्यार जताने की,
प्यार क्या होता है ये मुझे समझाने की,
कितना प्यार है खुद के लिए ये आजमाने की,
क्या जरूरत थी तुम्हे मेरी जिंगदी में आने की,
संघ में साथ जीने और मारने की कस्मे खाने की फिर
बिच सफ़र में ही साथ छोर जाने की
जब नहीं देना था जिंदगी भर जिंदगी बन कर साथ
तो तुम्हे क्या जरूरत थी मेरी जिंदगी में आने की…?