गीत
मनुहारों का गीत लिखूंगा ।
मैं भी मन का मीत लिखूंगा ।।
सौंदर्य की सहज कल्पना ।
जीवन की अतृप्त वासना ।
भावो की निर्द्वन्द सर्जना ।
अंतर्मन की विरह वेदना ।
निर्ममता की घोर यंत्रणा ।
गयी सिमट सी मूल चेतना ।।
अंधकार की छाती पर मैं
आशाओ का जीत लिखूंगा ।।
मनुहारों का गीत लिखूंगा ।
मैं भी मन का मीत लिखूंगा ।।
घूँघट पट में चाँद सलोना।
महक उठा तन का हर कोना।
उर – स्पंदन गुंजित होना ।
भावुकता का रंग पिरोना ।
धरती प्यासी व्याकुल होना ।
मेघों का वह तपन भिगोना ।
पायलिया की छमछम मादक
नूपुर का संगीत लिखूंगा।।
मनुहारों का गीत लिखूंगा ।
मैं भी मन का मीत लिखूंगा ।।
अंगड़ाई में मधुरिम यौवन ।
तरुणाई सा बहका चितवन ।
इच्छाओं का अद्भद मधुवन।
प्रणय गन्ध विखराता उपवन।
अलक छटा लहराती बन ठन।
आलिंगन को व्यकुल तनमन ।
सत रज तम में प्रीति मिलाकर
नव जीवन का रीत लिखूंगा ।।
मनुहारों का गीत लिखूंगा ।
मैं भी मन का मीत लिखूंगा ।।
जब अलंकार श्रृंगार खिले।
तब आकर्षण प्रतिकार मिले ।
फिर रात्रि याचना दीप जले ।
आसक्ति व्यथाओ में बदले ।
हिमखण्ड हुए पिघले पिघले ।
फिर ज्वार कहाँ उनसे सम्भले।
प्रिय के ऊष्ण कपोलों पर मैं ,
तृप्ति मिलन का शीत लिखूंगा ।
मनुहारों का गीत लिखूंगा ।
मैं भी अपना मीत लिखूंगा ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी