चंद शेर
✒स्याही की भी मंज़िल का अंदाज़ देखिये :
खुद-ब-खुद बिखरती है, तो दाग़ बनाती है—!
जब कोई बिखेरता है, तो अलफ़ाज़…बनाती है—!!
बैठा हूँ गर मैखाने में…,मुझे शराबी ना समझो…,
हर वो शख्श जो मंदिर से निकलता है,पुजारी नहीँ होता.
कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ,
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे।।