एक वजह है पीने का
कोई शौक़ नहीं मुझको घुट-घुट कर जीने का
है चोट लगी दिल में बस यही एक वजह है पीने का,
इस बेवफाओं की महफिल में एक उनकी ही कमी है
मेरे आँखों में आंसू जिनकी दी हुई निशानी है,
बिना उनके अब मेरा कोई वजूद नहीं जीने का,
है चोट लगी दिल में बस यही एक वजह है पीने का,
जब नजर मिली थी उनसे सुकून मिला था इस दिल को,
जबसे छोड़ गयी मुझको मैं ढूँढू हाथों टमें जाम लिए उस कातिल को,
कोई नहीं ये समझे क्या राज है मेरे इस हाल में जीने का,
है चोट लगी दिल में बस यही एक वजह है पीने का,
सब कोई ये कहता है बहुत दर्द दे गई वो जुल्मी,
अखिलेश जी का हाल कर गयी वो ऐसा जैसे होता है फ़िल्मी,
अब याद न करूँगा उसको जो कारण है मेरी बर्बादी का,
है चोट लगी दिल में बस यही एक वजह है मेरे पीने का,
आपकी कविता अच्छी है, उसके भाव भी अच्छे हैं। लेकिन उसमें वर्तनी की बहुत सी ग़लतियाँ थीं, जिनको मैंने ठीक कर दिया है। कृपया आगे वर्तनी पर विशेष ध्यान दें।
जी धन्यवाद, अब से मैं अपनी हर एक गलती पर नज़र रखूँगा.
अखिलेश जी आपके भाव अच्छे
हैं परन्तु शब्दों को शुद्ध लिखने का प्रयास करें
और अन्य अच्छे कवियों की रचनाएँ
पढ़ें ..मेरे गुरु जी मुझसे कहते थे जब
एक लाख कविता पढ़ना तब एक सार्थक
रचना को लिखने की सामर्थ्य उत्पन्न होगी।
मेरा उद्देश्य भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं
है बल्कि आपके मनोबल को बढ़ाना है।
जी धन्यवाद मैं आगे से कोशिस करूँगा की अच्छा लिखू