‘डर हमारे विचारों को कुंद कर देता है ‘
बात उन दिनों की है जब मेरे पतिदेव का ट्रांसफर चंडीगढ हो गया था और मैं पहली बार घर से बाहर अपने लोगों से दूर आई थी | मेरा बेटा सिर्फ 6 महीने का ही था, जलवायु परिवर्तन की वजह से बेटा काफी बीमार हो गया | पडौसी से डॉ. की जानकारी लेकर हम डॉ. के यहाँ चले गये..चेक-अप व दवा लेने के बाद क्योंकि इन्हें वहाँ से सीधे ऑफिस जाना था अतः इन्होनें मुझे एक रिकशे में बिठा दिया और ये अपने ऑफिस चले गये; चुंकि मैं पहली बार घर से बाहर निकली थी उपर से अंजाना शहर,,, मैं मन ही मन बहूत डरी हुई थी |
अभी हम थोडा ही दूर पहुंचे थे कि लगा कोई पीछा कर रहा है और कुछ बोल भी रहा है | एक तो पहले ही डर लग रहा था, अब तो मैं ओर ज्यादा डर गई और रिक्शे वाले से कहा कि ‘भैया थोडा तेज़ चलाओ’ पर ये क्या ? रिक्शा जितना तेज होता,,, पीछे आने वाला उतनी ही तेजी से आ रहा था,, मैं इतना डरी हुई थी की पीछे मुड कर भी नही देखा कि कौन है और वो क्या कहना चाह रहा है ? उस ठंड के मौसम में भी मैं पूरी तरह से पसीने से भीग गई थी |
तभी एकदम से एक साईकिल सवार रिक्शे के बगल में आ गया, अब तो मेरे होश-फाख्ता हो गये |
तभी वो जोर से चिल्ला कर बोला कि “मैडम, अपनी साडी का पल्लु सम्भालिये, वो रिक्शे के पहिये में आ जायेगा”, ये बोलता हुआ वो आगे निकल गया | मेरी आँखे भीग गई ये सब सुनकर | कुछ पल तो मैं हैरान सा उसे जाते हुए देखती व सोचती ही रह गई कि “अरे, ये तो कोई भला-मानुष था और मैं सोच रही थी कि ‘वो मेरा पीछा कर रहा है, जरुर छीना-झपटी का इरादा है उसका’ ?” मन ही मन उस से और प्रभु से माफी मांगी और ईश्वर का शुकिया अदा किया |
कभी-कभी हमारा भय ही हमें इतना डरा देता है कि हम कुछ भी अनुमान लगा लेते है | जबकि हमें पहले स्थिति का जायजा लेना चाहिये उसका सामना करना चाहिये | डरना तो बिल्कुल भी नही चाहिये, डर हमारे विचारों को कुंद कर देता है, दिमाग को बंद कर देता है | सारी स्थिति को समझ कर जब हम कुछ भी करेंगे तो वो कभी भी गलत नही होगा | खैर जीवन में आने वाली कई परिस्थितियों नें ही आज मुझे अंदर से मजबूत बना दिया है | शायद तभी कहा गया है कि जीवन सबसे बडा गुरू है और जीवन में घटित होने वाली घटनायें हमारे अहम सबक !!!
बहुत अच्छी लघु कथा ,जिस में एक सीख है .बहुत देर पहले एक कहानी पड़ी थी “FEAR GOD MOTHER ” बिलकुल उसी तरह की कहानी है .
जी,पर ये मेरे साथ हुई सच्ची घटना पर लिखा है | हार्दिक आभार हौंसला अफ्जाई के लिये,,, यूँ ही कृतार्थ करते रहिये ताकि आगे लिखने की प्रेरणा मिले |
सहमति है आपके लिखे विचारों से
बेहद आभार विभा जी,,, बस आप अपनों की सराहना ही लिखने की प्रेरणा व उत्साह देगी सो अपनी प्रतिक्रिया देकर कृतार्थ करते रहियेगा | क्या मैं आपको दीदी बोल सकती हूँ |
मुझे बेहद ख़ुशी होगी कि आप दीदी कहें मुझे
विभा दी, आपका हार्दिक आभार इस स्नेह के लिये