कविता

पलों का खेल

पल-पल मे बदले जिंदगानी
पल मे मिले खुशियां अपार
पल मे बिखर जाता संसार
पलों का अद्भुत खेल ये देखा
पलों पर टिका जिंदगी का मेला
पल में  तोला पल मे माशा
हैं अजब जीवन का तमाशा
बिखरते सपने भी एक पल में
सवंरते अरमान भी मन तन तल में
है पलों का मेल ये सारा
कभी साहिल को मिलता किनारा
कभी पल जीवन ज्यों सारा
कभी भटके पल ज्यों बंजारा
दो नैना पल पल बतियाते
पल में मन का भेद बताते
पल पल की हैं ये कहानी
पल पल में बदले जिंदगानी

मधुर

One thought on “पलों का खेल

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    अद्भुत है ये पलों का खेल,,, सुंदर |

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