गीत : भुला तो न देना
कहीं प्यार अपना भुला तो न देना
निगाहों से अपने गिरा तो न देना ||
चिंता हमारी पर है मंजिल तुम्हारी
सोचती हूँ जीया में ये कैसी बीमारी
पल पल जिलाकर रुला तो न देना
चित सपने सजाकर मिटा तो न देना ||
बहुत चाह है मेरे अरमान मन में
तडफी हूँ जन्मों-जनम इस लगन में
इस बार हमकों दगा तो न देना
लगा लों गले हस जफा तो न देना ||
इतबार करती हूँ हर आदमी पर
डरकर गुनाहों से जीया जमीं पर
महफ़िल सजाकर हटा तो न देना
नई राह हमकों दिखा तो न देना ||
चमक मेरी आँखों की देखों जरा
हरियाली छाई है इस जीवन धरा
इसमेँ समाकर गिला तो न देना
अंकुर उगाकर सुखा तो न देना ||
महातम मिश्र
बढिया। यह कविता आपने अपनी ओर से लिखी है या किसी महिला की ओर से ?
सादर धन्यवाद आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी, हा हा हा हा हा नायिका तो एक महिला ही है…….