गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये दस्तंदाजियां ये करावतें हर लम्स पे ज़हन का पहरा है
सुरखुरु फिर भी मोहब्बत और जख्म गहरा है

ये कैसी गुरवतें ये चाहते है क़ज़ा या राज़ कोई गहरा है
वक़्त बदला नहीं न शीशा ए दिल और सख्त पहरा है

ये फानूस से आदमी ये ख़्वाओं की ज़मी नहीं एक चेहरा है
है रूह ज़ार ज़ार अश्क हो गए आब और वक़्त ठहरा है

ये रंगीन महफिले ये मरहले और है एक गहरा सन्नाटा
है बेज़ुबान अल्फाज़ और गम ए जीस्त और सख्त चेहरा है

ये बोझिल सा सफर ये बातें बेअसर और जज़्बातों का धुँआ
जला करते हो थोडा तुम, थोडा मैं और दिल भी बहरा है

— अंशु प्रधान

One thought on “ग़ज़ल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर गज़ल

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