औरंगज़ेब रोड के नाम परिवर्तन को लेकर रुदाली गान
1. औरंगज़ेब के जीवन में उसकी सनक ने मुग़ल सल्तनत बर्बाद कर दिया। करीब 20 वर्षों तक दक्कन में चले युद्ध ने सरकारी खजाना समाप्त कर दिया, उसके सभी सरदार या तो बुड्ढे हो गए या मर गए। मगर विजय श्री नहीं दिखी। अपने उत्कर्ष से मुग़ल सल्तनत जमीन पर आ गिरी और ताश के पत्तों के समान ढह गई। यह औरंगज़ेब की गलती के कारण हुआ।
2. औरंगज़ेब ने तख़्त के लिए अपने तीन भाइयों दारा शुको, शुजा और मुराद को मारा था। अपने बुड्ढे बाप को आगरा के किले में एक अँधेरी कोठरी में कैद कर दिया था। उस कोठरी में एक छोटी से खिड़की से शाहजहाँ ताजमहल को निहार कर अपने दिल की कसक पूरी करता था। शाहजहाँ को पुरे दिन में एक घड़ा पानी भर मिलता था। जेठ की दोपहरी में कंपकपाते बूढ़े हाथों से पानी लेते समय वह मटका टूट गया। शाहजहाँ ने दूसरे मटके की मांग करी तो हवलदार ने यह कहकर मना कर दिया की बादशाह का हुकुम नहीं हैं। तब पूर्व शंहशाह के मुख से निकला। हे अत्याचारी तुझसे भले तो हिन्दू हैं जो मरने के पश्चात भी अपने पूर्वजों को श्राद्ध के नाम पर भोजन करवाते है। तू तो ऐसा निराधम है जो अपने जिन्दा बाप को भूखा-प्यासा मार रहा हैं।
3. औरंगज़ेब ने अपने तीनों भाइयों को निर्दयता से मारा था। उसे सपने में उनकी स्मृतियाँ तंग करती रही। वह इतना शकी हो गया की अपने खुद के पुत्रों को कभी अपने समीप नहीं आने दिया। उन्हें सदा डांटता डपटता रहता था। क्यूंकि उसे लगता था की वे गद्दी के लिए उसे ठीक वैसे न मार दे जैसा उसने अपने सगो के साथ किया था। उसकी इस नीति के चलते उसके बेटे उसके जीवनकाल में ही बुड्ढे हो गए मगर राजनीती का एक पाठ भी न सीख सके। यही कारण था की उसके मरने के बाद वे सभी राजकाज में असक्षम सिद्ध हुए। मुगलिया सल्तनत का दिवाला निकल गया। उसी के चिरागों ने उसी के महल में आग लगा दी।
4. औरंगज़ेब ने अपने पूर्वजों की राजपूतों से दोस्ती की नीति को तोड़ दिया। वह सदा राजपूत सरदारों को काफिर और इस्लाम का दुश्मन समझता। इस नीति के चलते राजपूत सरदार उसकी ओर से किसी भी युद्ध में दिलोजान से नहीं लड़ते थे। मुस्लमान सरदारों को इस्लाम की दुहाई देकर औरंगज़ेब भेजता।मगर शराब और शबाब में गले तक डूबें हुए सरदार अपने तम्बुओं में पड़े राजकोष के पैसे बर्बाद करते रहे। अंत में परिणाम वही दाक के तीन पात। मुग़ल साम्राज्य युद्ध पर युद्ध हारता चला गया। प्रान्त प्रान्त में अनेक सरदार उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में वीर शिवाजी, बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल, पंजाब में सिख गुरु, राजपुताना में दुर्गादास राठोड़ आदि उठ खड़े हुए। इस प्रतिरोध ने मुग़ल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी। अपने साम्राज्य के हर कौने से उठे प्रतिरोध को औरंगज़ेब न संभाल सका।
5. औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा। औरंगज़ेब के इस फरमान से आहत होकर वीर शिवाजी ने औरंगज़ेब को पत्र लिख कर चुनौती दी थी कि अगर हिम्मत हो तो उनसे जज़िया वसूल कर दिखाये। औरंगज़ेब ने होली पर प्रतिबन्ध लगाकर, मंदिरों में गोहत्या करवाकर, अनेक मंदिरों को तुड़वा कर अपने आपको “आलमगीर” बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। काशी का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवराय मंदिर औरंगज़ेब के हुकुम से नष्ट कर उनके स्थान पर मस्जिद बना दी गई। मगर उसका परिणाम वही निकला जो हर अत्याचारी का निकलता हैं। बर्बादी।
औरंगज़ेब को उसके कुकर्मों, उसके बाप के शाप, उसके भाइयों की हाय, हिन्दुओं के प्रति वैमनस्य की भावना और मज़हबी उन्माद ने बर्बाद कर दिया। ऐसे अत्याचारी के नाम से दिल्ली में सड़क का नाम होना बड़ी गलती थी। अब अगर यह गलती सुधर रही है तो इसे अवश्य सुधारना चाहिये। एक आदर्श, राष्ट्रवादी, वैज्ञानिक, महान व्यक्तित्व के धनी डॉ अब्दुल कलाम के नाम पर सड़क के नामकरण में छदम जमात को परेशानी हो रही हैं। एक अरब हिन्दुओं के देश में जहाँ पर हिन्दुओं की जनसंख्या 2011 के आकड़ों के अनुसार 79% के लगभग हैं। मगर एकता के अभाव के चलते मुट्ठी भर लोग हमसे ज्यादती करने का प्रयास करते हैं।
हमें क्या करना है-
हिन्दुओं के मध्य एकता ऐसी होनी चाहिए की इसी सड़क का नाम वीर शिवाजी के नाम पर हो तो उसका प्रतिरोध करने का भी साहस किसी में न हो। यही इस लेख का मूल सन्देश है।
औरंगज़ेब रोड की बारी अभी आई ही हैं।
अकबर,फिरोजशाह,तुग़लक़ अभी बाकि हैं।।
— डॉ विवेक आर्य