मौत बना दोस्त…
जिंदगी में जाने ये कैसा गम का हवा चला है,
मौत मेरा दोस्त बनने आज खुद ही निकल पड़ा है,
हर एक ख्वाब टूट चूका है मेरा एक एक कर के,
मुझसे नाराज मेरे जिंदगी का हर एक खुशि हो गया,
मौत मेरा दोस्त बनने आज खुद ही निकल पड़ा है,
जानता तो मैं भी नहीं था की अपनी मंजिल भूल जाऊँगा,
कलम छोड़ एक दिन हाथो में पिस्तौल उठाऊंगा,
अरमान टूटेगा एक पल में सारा मेरे मन का,
आँख दोनो मेरें गम का आज नदी हो गया है,
मौत मेरा दोस्त बनने आज खुद ही निकल पड़ा है,
अब ना कोई रंग बचा चढा मुझ पर जबसे लाल रंग है,
जिंदगी हुई है ऐसी जैसे बिना डोर की पतंग है,
फूल बन गया हु में एक उजड़े हुए चमन का,
अपना भी इस वक़्त मेरा परया बन गया है,
मौत मेरा दोस्त बनने आज खुद ही निकल पड़ा है.