कविता

रिश्वत का दौर

आज के समय में एक जरूरत बन के शामिल हो गया है रिश्वत,
किसी की दुर्घटना में मृत्यू हो जाए तो भी देना पड़ता है रिश्वत,

अब तो रिश्ते नातो में भी नहीं होते प्यार की बाते,
भाई अपने भाई को मरवाने के लिए देता है रिश्वत,

एक दिन ऐसा भी आएगा कभी कल्पना ना किया था हमने,
अपने आप की सुरक्षा के लिए देना पड़े रिश्वत,

छोड़ के येे मृतुलोक भगवान भी चले गए है अपने लोक,
जब से देखे मंदिरो में उनके दर्शन के लिए लेते हुए रिश्वत,

मंदिर में पुजारी रोड पर बन के बिखरी,कोट में जज,बाजार में ठग,थाने में पुलिश , नेता लोग निकाल कर जूलुश,
हर कोई कही ना कही किसी ना किसी तरह से ले रहे है रिश्वत,

अखिलेश छोड़ के तुम्हे ये कलम और लेखकी अब जाना पड़ेगा जेल,
क्युकी इस रिश्वत की दुनिया में तुम लेते नहीं हो किसी से रिश्वत.

अखिलेश पाण्डेय

नाम - अखिलेश पाण्डेय, मैं जिला गोपालगंज (बिहार) में स्थित एक छोटे से गांव मलपुरा का निवासी हु , मेरा जन्म (23/04/1993) पच्छिम बंगाल के नार्थ चोबीस परगना जिले के जगतदल में हुआ. मैंने अपनी पढाई वही से पूरी की. मोबाइल नंबर - 8468867248 ईमेल आईडी [email protected] [email protected] Website -http://pandeyjishyari.weebly.com/blog/1