दन्तरक्षा – टूथपेस्ट बनाम दातुन
यों तो डॉक्टर साहब का सुपुत्र पी.एम.टी. की तैयारी कर रहा है, किन्तु एक सप्ताह से दाढ़ के दर्द से परेशान है। डॉक्टर साहब ने कैविटी में सोरेल सीमेन्ट भरवा दी है परन्तु दर्द यथावत है। बच्चे की उम्र मात्र १६ वर्ष है। हमारे पडौसी का लडका बी.एससी. की पढाई कर रहा है किन्तु तीन दिन पूर्व दांत निकलवाने गया था और दन्त चिकित्सक महोदय ने जिस दांत में दर्द था उसे छोड़ निकट का दूसरा दांत खींच दिया है। अब मसूढों में सूजन है, जब सूजन उतरेगी, तब दांत निकाला जाएगा। लडके की आयु १८ वर्ष है। पच्चीस वर्षीय बैंक क्लर्क श्री व्यास के ऊपर के दो दान्त निकाल दिए गये है। दूसरे दांत लगाने में चार पांच दिन लगेंगे। चेहरा बडा भद्दा व बदसूरत दिखता है अत: बेचारे अवकाश लेकर घर पर आराम फरमा रहे हैं।
ये तो कुछ ही केस है। आपको अपने आस पडौस में, मुहल्ले में तथा परिचितों में ऐसे बहुत से दन्त पीड़ित मिल जाएंगे। आज दांतों के दर्द की समस्या आम होती जा रही है। एेसा नहीं है कि पहले लोगों के दांतों में दर्द नहीं होता था, किन्तु उस समय यह समस्या पचास या साठ वर्ष की आयु के बाद होती थी। उस समय सत्तर से अस्सी साल के वृद्ध भी दांतों से बादाम तोड़ लेते थे व चना चबैना का सेवन भी कर लेते थे। पर आजकल १५ या २० वर्ष की आयु में ही दंत चिकित्सकों की शरण में जाने वाले बच्चों व युवकों को देखकर दुख होता है।
दांतों का महत्व
जिस आहार से प्राणीमात्र के शरीर की रचना तथा पोषण होता है। आहार को पीस कर आमाशय में पाचन योग्य बनाना दांतों का ही कार्य होता है। दांतों का स्वस्थ और मजबूत रहना आवश्यक है क्योंकि हमारा स्वास्थ्य भोजन के शरीर में पूर्णपाचन पर निर्भर रहता है अत: दांत हमारे जीवन का आधार है। इन्ही दांतों के भरोसे हम कच्ची पक्की, शुष्क या हरी, नर्म व कठोर, खाद्य व अखाद्य सभी प्रकार की वस्तुओं का उपभोग करते है। ये दांत ही हैं जो इस सामग्री को पीसकर जीवनोपयोगी बना देते है। दांतों के इस महत्व से परिचित होते हुए भी आज जनसाधारण इनकी तरफ से लापरवाह है। कम उम्र में ही पायरिया जैसा रोग लग जाता है, जिससे दांतों व मसूढों से खून आने लगता है और इस रोग के कारण युवक अनेक रोगों के शिकार हो जाते है। सबसे अधिक दांतों के रोग व इनकी समस्याएं पिछले लगभग तीस वर्ष से उत्पन्न हुई है। इसका सबसे बडा कारण है, टी.वी. पर विभिन्न प्रकार के टूथपेस्ट व उनके विज्ञापन। जबसे घर पर टीवी का प्रचलन प्रारंभ हुआ है, इस पर प्रसिद्ध फिल्मी सितारों द्वारा दिए जा रहे विज्ञापनों से आकृष्ट होकर लोग टूथपेस्ट का प्रयोगयसहै। आज भी शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित, ओमी वैद्य जैसे फिल्मी सितारे टूथ ब्रश व पेस्टों का धुंआधार विज्ञापन कर रहे है। विज्ञापन भी कैसे कैसे। दांतों में इतने बडे बडे कीटाणु दिखाए जाते है,जैसे दांत जंगल हो और उनमें विशालकाय खतरनाक प्राणी घूम रहे हों। इन विज्ञापनों से आखिरकार बच्चे बडे डर जाते है और मजबूर होकर टूथपेस्ट का सहारा लेने लगते हैं।
टूथपेस्ट से हानियां
टूथपेस्टों में अन्य कैमिकल्स के अतिरिक्त फ्लोराईड की मात्रा अधिक होती है। ये फ्लोराईड पेस्ट में झाग उत्पन्न करने का काम करता है, लेकिन इसके साथ ही ये फ्लोराइड दांतों को चमक व मजबूती देने वाली पर्त एनेमल को धीरे धीरे नष्ट करने लगता है। इससे आखिरकार दांतों की जडें कमजोर व खोखली हो जाती है और फिर इनके लिए भी विज्ञापन शुरु हो जाते है। यदि आपको गर्म या ठण्डी चीज खाने से दांतों में टीस उत्पन्न होती है तो इसे सेन्सेटिवीटी कहते है और फिर सेन्सोडाइन या अन्य मेडीकेटेड टूथपेस्ट के उपयोग की सलाह दी जाती है। इतना ही नहीं कुछ टूथपेस्ट में तम्बाकू में पाया जाने वाला निकोटिन विष की कुछ मात्रा भी पाई गई है। निकोटिन विष के प्रयोग से टूथपेस्ट करने वाले को हल्का नशा उत्पन्न होता है तथा उसी पेस्ट को करने की लत लग जाती है। अब शहरों में ही नहीं छोटे छोटे कस्बों व गांवों में भी टूथपेस्ट का प्रचलन बढ गया है और यह टीवी और इस पर होने वाले विज्ञापनों का असर है।
दातुन तथा दंतमंजन
दांतों को स्वच्छ, चमकीला, मजबूत व रोगाणुरहित करने का सर्वोत्तम तरीका है, दातुन का प्रयोग। दातुन सर्वत्र सुलभ हरी वनस्पतियों व वृक्षों की टहनियां होती हैं, जो चिकित्सा पद्धति के तौर पर अनेक रोगों की निवृत्ति के लिए उपयोग में लाई जाती हैं, जैसे-
1. मुख की दुर्गन्ध दूर करने तथा पायरिया जैसे रोग को नष्ट करने के लिए नीम की टहनी की दातुन श्रेष्ठ है।
2. यदि जीभ लडखडाती हो व हकलापन हो तो उसे दूर करने के लिए नियमपूर्वक गूलर की दातुन से रोग दूर होकर हकलापन भी मिटता है तथा दांतों की चमक व मजबूती में वृध्दि होती है।
3. स्मरणशक्ति में वृद्धि करने के लिए अपमार्ग वनस्पति की दातुन का प्रयोग अत्यन्त लाभप्रद है।
4. यदि दांतों की सफाई के साथ साथ गले में माधुर्य भी लाना हो तो बेर की टहनी की दातुन करनी चाहिए।
5. सन्तानोत्पत्ति तथा शुक्राणु वृद्धि के लिए बबूल वृक्ष की टहनियों की दातुन का प्रयोग सदियों से किया जाता रहा है। गौरतलब है कि प्रमेह आदि रोगों तथा पौरुषजन्य बीमारियों को दूर करने के लिए बबूल की फलियां तथा पत्ते व गोंद आदि काम में लाए जाते है।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि वृक्ष व वनस्पतियां किस प्रकार हमारे दांतों की रक्षा के साथ साथ अनेक शारीरिक व्याधियों का भी निवारण करती है। नीम के एण्टीसेप्टिक या जीवाणुनाशी गुणों से अधिकांश लोग परिचित है। कदम्ब, करन्ज, आम, खादिर या खैर आदि के वृक्षों का उपयोग भी दातुन के लिए किया जाता है।
ब्रश का प्रयोग
वृक्ष की टहनी को दांतों से अच्छी तरह कुचलकर ब्रश का रुप देकर दातुन की जाती है। इससे दांतों का व्यायाम भी होता है किन्तु जिस ब्रश से रोज दांत साफ किए जाते है, वे मैल को अपने अन्दर अवशोषित कर दूषित होते जाते है और दांतों की अनेक बीमारियों व पायरिया का कारण बनते है। ये ब्रश प्रति दो या तीन माह में बदल दिए जाने चाहिए और प्रतिदिन व तीसरे चौथे दिन उबलते जल में रखकर धोना चाहिए। क्योंकि ठण्डे जल में जीवाणु नष्ट नहीं होते हैं। एक ब्रश का उपयोग यदि एक से अधिक लोग करते है, तब तो दांतों के साफ होने के साथ जड से साफ होना निश्चित है। इससे एक व्यक्ति की शारीरिक व्याधि दूसरे को लग सकती है।
क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है?
दन्तरोग और इनसे जुडी समस्याओं से बचने एवं दन्त रक्षा का आखिर समाधान क्या है? शहरों में रहने वाली जनसंख्या करोडों में है और दातुन आदि सुलभ होना कठिन है। अत: टूथ पाउडर व टूथपेस्ट का प्रयोग न करें तो इनके बगैर काम नहीं चल सकता है। अत:
1. चुटकी भर सेंधा नमक में दो बूंद सरसो का तेल मिलाकर दांत साफ करना सैकडों प्रकार के टूथपेस्टों और पावडरों से उत्तम है। इससे मसूढे मजबूत बनते हैं तथा पायरिया जैसा रोग उत्पन्न नहीं होता है। टूथपेस्ट बनाने वाली विदेशी कंपनियां पहले नमक से मंजन करने का मजाक उडाती थी पर बाद में नमक का महत्व समझ आया तो विज्ञापन आने लगे ‘क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है’ और टूथपेस्टों में नमक का प्रयोग धडल्ले से होने लगा।
2. सेंधा नमक और सरसों के तेल का योग पूरे देश में अनुभूत चिकित्सा के तौर पर प्रयोग किया जाता है। आप इसे अपना कर व्यर्थ के व्यय से बच सकते है। नमक और तेल दोनो खाद्य पदार्थ है और इनका कुछ अंश अन्दर शरीर में चला भी जाए तो किसी हानि की संभावना पदार्थों व कैमिकलों के विषय में ऐसी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है।
3. अपने आप तैयार किए गए पाउडर या देशी मंजन जिनमें बादाम के छिलकों की राख, सैंधा नमक, सोंठ पावडर, काली मिर्च पावडर, दालचीनी पावडर से बना दन्त मंजन दांतों के अनेक कष्टों का रामबाण इलाज है। लौंग पावडर व उसमें आधा कपूर पावडर का बारीक चूर्ण दांतों पर मलने से दांत स्वच्छ निर्मल चमकीले हो जाते है।
4. खुरासानी, अजवाइन, वायविडिंग तथा अकरकरा तीनों की बराबर मात्रा कूट पीसकर जो दंतमंजन स्वयं आप तैयार कर प्रयोग करेगें उससे दांतों में कैविटी उत्पन्न होना, कीडा लगना, सेन्सेटिविटी होना जैसी सब खराबियों को दूर कर दांत व मसूढे मजबूत बनाता है।
सारांश ये है कि विदेशी टूथपेस्ट व टूथ पावडरों से बचिए तथा स्वदेशी दन्त मंजन उपयोग करें। टूथपेस्ट उपयोग करना आवश्यक हो तो आयुर्वेदिक विधियों से तैयार टूथपेस्ट को ही प्रयोग कर लम्बे समय तक दन्त क्षय से बचे। आजकल गांवों और छोटे कस्बों में भी विदेशी कम्पनियों के टूथपेस्ट व टूथ पावडर उपयोग किए जा रहे है। टीवी के विज्ञापनों का मूल्य जोडकर इनकों उंची कीमत पर बेचा जाता है। अत: कम से कम गांवों तथा कस्बों के लोग दातुन का उपयोग करें। बीमारी तथा पैसा दोनों की बचत होगी।
-डॉ. डी.एन. पचौरी
बेहद ज्ञानवर्धक व सराहनीय आलेख
बहुत अच्छा लेख ! मैं इससे अक्षरश: सहमत हूँ। मैं कई वर्ष से सेंधा नमक और सरसों के तेल के पेस्ट का उपयोग मंजन के रूप में कर रहा हूँ और मेरे दांत बहुत अच्छी हालत में हैं। मैं सब कुछ चबा लेता हूँ और दाँतों से अखरोट भी तोड़ लेता हूँ।
ज्ञानवर्द्धक आलेख