मुक्तक
अंदर बाहर आग लगी है घर चौबारे सुलग रहे
ये हालात सुधारें कैसे कैसे कोई विलग रहे
टुकड़ा-टुकड़ा टूटा भारत टूटी उसकी ताक़त भी
जांत-धर्म के झगड़े में क्योंभाई-भाई अलग रहे
पहले मुझको फूलों जैसा तेरा सँग जो प्यारा था
धीरे-धीरे जाना मैंने तेरा रूख तो न्यारा था
मीठी-मीठी बातें तेरी सबको ही फुसलाती थी
मीठी बोली से जाने कितनों को तूने मारा था
ये अजीब रोग है इश्क़ का न रिहाई दे न सुकून दे।
मैं इसे निभा या मिटा सकूँ मुझे हौसला वो जूनून दे।
आशा पाण्डेय ओझा
सुंदर मुक्तक