चाहत का सिला
जिसको अपने दिल में बसाया,
उसने ही दिल तोड़ा है !!
भरी दुनियाँ में जिसने हमको,
तन्हाँ करके छोड़ा है !!
चाहत,मोहब्बत,प्यार,वफ़ा का,
यही सिला क्यों होता है !!
हमने जिसको मंजिल समझा,
उसने चौराहे पर छोड़ा है!!
हर कदम पर खाकर ठोकर,
प्यार से अब ड़र लगता है!!
तन्हाई में दिल अकसर अब,
खुद ही से बातें करता हैं!!
“आशा” इस दुनियाँ में देखो,
दिल को लोग खिलौना समझें!!
जब चाहा तब इससे खेला,
जब चाहा तब तोड़ा है !!
जिसको अपने दिल में बसाया,
उसने ही दिल तोड़ा है !!
– राधा श्रोत्रिय ”आशा”
कविता बहुत अच्छी लगी .
अच्छी कविता।