दर्द-ए-दिल का एहसास
..एक सपना है अब अधूरा सा – एक टूटी सी आस है शायद..
..टूटी है आरज़ू – आइनें की तरह – “राज” गमे-इश्क़ में डूबा सा है..
..जब हर हसीन मंज़र आँखों से छिन गया हो..
..ये भी कोई सफ़र है – या कोई बद्दुआ है..
..जिंदगी में रंग नहीं बिन आपके, रखो कदम और इसे सजाने लगो..
..चाहा भी तो बस उसे हमने मुझसे नहीं जिसे प्रीत है..
..गम आसूं सब कुछ पी लिया..
..नहीं पी पाया तो खुद के मन के गम को..
….आखिर क्यूँ ?
..ग़र मन की गंगा सूख गयी फिर वो कहाँ बहती है..
..मौसम के नज़ारे, दिन-रैन ये सारे हर पल यही सिखाते हैं…
..जाने वाले कब वापस आते हैं..?