कविता

मैं जाति अनेक क्यूं

मैं जाति अनेक क्यूं हूं
आज मेरा अस्तित्व क्या?
युवाओं का भविष्य जोड़ दिया
मुझसे जाने कब कहां
पढ़ने वाले आंखें घिसते श्रम-कर्म करते
फिर भी मैं उनकी नहीं
मुझसे तो वो दूध मलाई खाते
जो श्रम करना जाने ही नहीं
मैं जाति अनेक क्यूं
राजनीति का वोट बैंक हूं
मुंह मुझसे मोडोगे कैसे आज?
दलालों के लिए कुबेर खजाना हूं
गरीबों के लिए बनी अभिशाप आज
सदियों पहले से चली आ रही प्रथा हूं
पर रोजगार दाखिले का दंश हूं आज !
मैं जाति अनेक क्यूं…
— गीता यादव

गीता यादव

, निवासी दिल्ली