“गीतिका”
सावन का श्याम झूला, डारी कदमा डारी
इक बार फिर झूला दों, श्यामल रास बिहारी
सखियां विवस खड़ी हैं, चितवत राह तुम्हारी
देखों भी श्याम आओं, आओं तनिक मझारी ||
मुरली की तान कान्हा, तरसत महल अटारी
सुध बुध बिसर रही है, तक गोवर्धन गिरधारी ||
महा माया मन-मन राचे, बोझिल जीवन धारी
पग पग नाचे ताता थैया, नाचे घर नर नारी ||
पीये जल जमुन जहरिला, तलफत मीन बिचारी
गाय-गोप जापत काधा, सुधि लो कृष्ण मुरारी ||
राग द्वेष उन्माद मह, इक आसन बलिहारी
भुल न जाना श्याम सखे, आस तुम्हरी भारी ||
यशुदा के आंखन तारे, राधा संग हितकारी
दर्शन तो दो घनश्याम, कह गीता अवतारी ||
महातम मिश्र
सुंदर रचना सामयिक
सादर धन्यवाद आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी