जैन समाज का पर्युषण पर्व
आज जैन समाज के पर्युषण पर्व की समाप्ति पर “क्षमा-वाणी” (मिच्छामि – दुक्कड़म्) का पर्व मनाया जाता है। स्वयं को क्षमा करना सबसे बड़ी व पहली क्षमा है। माफी से माफ करने वाला भी हलका होता है। उसे लगता है जैसे क्षमा करने से उसके सिर से बोझ उतर गया है। क्षमा करने में दूसरा व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण नहीं है। क्षमा आप अपने से प्रारम्भ करें व सबको क्षमाकरें।
क्षमा माँगना सरलता है, क्षमा करना बड़प्पन है। वैसे ये दोनों जूदा नहीं है, एक दूसरे से जुड़ें है। किसी नें ठीक ही कहा है कि —- “दुश्मन के लिए भट्टी इतनी गरम न करें कि आप भी उसमें जलने लगें।”
उत्तम क्षमा
सबको क्षमा
सबसे क्षमा
क्षमा करें कहना कठिन होता है लेकिन हिम्मत की भी बात होती है
सुंदर बात