सामाजिक

क्या समस्या का समाधान आरक्षण है?

मनुष्य के जीवन को पूर्णरूपेण सुख- सम्पन्नतामय बनाने के लिए आर्थिकीय दृष्टि सदैव पर्याप्त नहीं हुआ करती है। कदाचित् इसका यह तात्पर्य लेशमात्र भी नहीं है कि अर्थ का सुख-शान्ति-समृध्दि में कोई स्थान नहीं। संसार भर में बड़े-से-बड़े वेदज्ञों, नीतिशास्त्रवेत्ताओं, विज्ञानविशारदों, सगीतज्ञों आदि मनीषियों को यदि भोजन न मिले तो उनकी सारी विद्याएॅं एक कोने में ही धरी रह जायेंगी।

‘भूखे भजन न होई गोपाला’ की उक्ति के आधार पर उनकी सारी प्रतिभा क्षुधा रूपी पिशाचिनी के द्वारा ग्रसित कर ली जाती है। अन्त में क्षुधा तृप्ति के लिए यत्न तो अवश्यंभावी है, अतः करना ही पड़ेगा। क्योंकि ‘बुभुक्षितैः व्याकरणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते’ की उक्ति पूर्णरूपेण चरितार्थ होगी। यह भी सम्भव हो सकता है कि वे अपने धर्म-कर्म को त्याग कर पापकर्म से अपनी क्षुधा की तृप्ति कर लें, क्योंकि साहित्य में अनेकों उदाहरण दृष्टिगत होते हैं यथा-‘बुभुक्षितः किं न करोति पापम्’ अर्थात् भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं करता? इससे यह आशय तो स्पष्ट द्योतित होता ही है कि अर्थ मनुष्य जीवन को सुखमय बनाने में एक साधन है, जिसके अभाव में कोई भी व्यक्ति, समाज अथवा देश अपना सर्वांगीण विकास नहीं कर पाता।

समाज की भावनाओं तथा गतिविधियों का भूखा मनुष्य आरक्षण रूपी भोजन को अनायाश अथवा स्वल्प प्रयास से प्राप्त करना चाहता है। इसी सामाजिक गतिविधियों का अनुद्यमी वर्ग आरक्षण चाहता है, जिसका ज्वलन्त उदाहरण गुजरात में दिखायी दे रहा है।

गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल दूरगामी व सामाजिक लाभ को न देखकर एक ऐसी गलत अवधारणा में बह गये हैं, जिसका परिणाम दिनो-दिन कष्टप्रद व देश-समाज तथा जनों के प्रति क्षति पहूॅंचाने का कार्य कर रहा है। हार्दिक पटेल ने एक सोची समझी चाल चली है, जिसका लाभ उसे राजनीति के रुप में प्राप्त हो रहा है। वे सभी स्वार्थी नेता इस कार्य को बहुत अच्छा बता रहे तथा समर्थन कर रहे हैं। तथा इसके साथ ही राजनीति के मैदान में पदार्पण करने की सलाह दे रहे हैं।

जिस प्रकार पटेल समुदायों के लिए आरक्षण को लेकर मांग की जा रही है, उससे राज्य में हिंसा का नया वातावरण तैयार हुआ है। आजादी के बाद अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सामाजिक तथा आर्थिक रुप से मुख्यधारा में लाने के लिए उन्हें दश वर्षों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया। बाद में दश वर्ष की समयावधि को लगातार बढ़ाया जाता रहा है। जबकि यह नहीं देखा गया कि वे लोग ;आरक्षण को प्राप्त करने वालेद्ध आरक्षण के योग्य हैं अथवा नहीं।

१९९॰ में वी पी सिंह की सरकार ने आरक्षण का भरपूर लाभ लिया, जिसके चलते उनकी सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया। इसके बाद से ही आरक्षण राजनीति को चमकाने का नया अस्त्र बन गया। कुछ समय बाद शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण लागू कर दिया गया। इसलिए सर्वत्र ही आरक्षण की मांग करने वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। गुजरात का पटेल समुदाय भी इसी का एक अंग है।

मुझे यह लिखते हुए बड़ा आश्चर्य होता है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक जिन लोगों को आरक्षण के आधार पर लाभ मिला वह वर्ग अभी भी समर्थशील नहीं हो पा रहा है, आज भी वह चाहता है कि उसे पर्याप्त मात्रा में आरक्षण प्राप्त हो। क्या वह सदा के लिए ही आरक्षित रहेगा? आरक्षण प्राप्त करने वालों को लेशमात्र भी संकोच नहीं है, जिनके कारण एक योग्य व्यक्ति का चयन नहीं हो पाता।

इसी आरक्षण नीति ने हमारे देश का यथार्थ रुप में पतन किया है। जिन लोगों को थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं होता, उन लोगों केा आरक्षण के आधार पर स्कूलों, अस्पतालों आदि स्थानों पर सेवाएॅं देने का अवसर प्राप्त हो जाता है। ये कैसी विडम्बना है सरकारी स्कूलों में प्रायः लोग अपने बच्चों को इसलिए नहीं पढ़ाना चाहते, क्योंकि वहाॅं बैठे हुये अध्यापक लोग स्वयं आरक्षण के आधार पर अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं। इसको इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है कि जिन अयोग्य लोगों की सेवा सरकार आरक्षण के आधार पर कर रही हो वह भला दूसरो की सेवा कैसे कर सकते हैं। तात्पर्य यह है कि वह बच्चों को कैसे पढ़ा-लिखा सकता है, जो स्वयं ४॰ फीसदी अंक लेकर अध्यापक बना हो वह १॰॰ फीसदी परिणाम कैसे दिखा सकता है?

​आज आरक्षण को एक बुनियादी अधिकार के रूप में देखा जाने लगा है, न कि इस रूप में कि यह सामाजिक और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों को मुख्यधारा में लाने की व्यवस्था है, जो जाति विशेष का होने के कारण शोषण और उपेक्षा का शिकार हुए। आरक्षण की मांग इसके बावजूद बढ़ती जा रही है। सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित हो रही है। भले ही गुजरात में पटेल समुदाय की हिस्सेदारी १२ प्रतिशत के आसपास हो, लेकिन वह सामाजिक-आर्थिक और साथ ही राजनीतिक रूप से भी सक्षम है। यह समझना कठिन है कि एक ऐसा व्यक्ति जो सभी साधनों से सम्पन्न हो वह पुनरपि आरक्षण के लिए इतना ज्यादा लालायित क्यों हो रहा है? आरक्षण की आज कई वर्गों को आवश्यकता है, उनको फिर भी आरक्षण की इतनी चाह नहीं। इससे सीधा स्पष्ट होता है कि हार्दिक पटेल का उद्देश्य केवल मात्र आरक्षण ही प्राप्त करना नहीं है अपितु इससे यह भी उजागर होता है कि ये राजनीति का सिक्का खेलना चाहता है। क्योंकि पूर्व में संप्रग सरकार ने जाटों को आरक्षण देकर राजनैतिक खेल खेलने का यत्न किया किन्तु कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया।

पिछले कुछ समय से कई समर्थ समझी जाने वाली जातियाॅं अपने को पिछडा घोषित कराने के लिए तैयार हैं, वहीं अनेक जातियाॅं एस सी तथा एस टी के वर्ग में आना चाहती हैं। आरक्षण प्रदान करने से ये समस्याएॅं समाप्त नहीं होने वाली अपितु आरक्षण को जड़ से ही समाप्त कर देना सर्वोचित होगा। यदि पटेल और जाट खुद को पिछड़ा वर्ग बाताएंगे तो फिर आने वाले दिनों में अन्य समुदाय के लोग भी अपने लिए आरक्षण की माॅंग करेंगे, इसलिए सरकार को सोच-विचार कर निर्णय लेने की आवश्यकता है।

आरक्षण के मामले में इसकी जरूरत बढ़ रही है कि आरक्षित समुदायों को शैक्षिक योग्यता में रियायत एक सीमा तक ही दी जाए। ऐसी स्थितियाॅं ठीक नहीं कि न्यूनतम अंकों के होने पर भी अधिक अंक वाले व्यक्ति को प्रवेश न मिलकर आरक्षित वर्गों के युवा आगे बढ़ जाएॅं। अब बात केवल सरकारी नौकरियों की ही नहीं है बल्कि उच्च शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश की भी है। क्योंकि प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान भारत में गिने-चुने हैं। इन संस्थानों में भी आरक्षण के आधार पर एक अच्छी मेधा से हमारा देश वंचित रह जाता है, और ऐसे मेधा सम्पन्न बालकों को उनके परिजन शिक्षा के लिए विदेशों में भेजते हैं। इससे अच्छी खासी मुद्रा विदेशों में भेजी जाती है। इससे भी भारत को आर्थिक दृष्टि से नुकसान है। यदि यह मुद्रा बाहर जाने के स्थान पर देश में ही उपयोग हो तो बहुत ही अच्छा रहेगा। और आगे चलकर वह विदेश में भेजा हुआ बालक विदेश में ही अपनी मेधा का प्रयोग करता है, जिससे उस देश को लाभ मिलता है। स्पष्ट है कि भारत से आरक्षण को सदा-सदा के लिए सभी वर्गों से समाप्त कर देना चाहिए, या आरक्षण देने की नीति में सुधार किया जाना चाहिए, उसको एक निश्चित समय के लिए सुनिश्चित करना चाहिए, निश्चित अवधि के पश्चात् समाप्त कर देना चाहिए। अतः सरकार तथा जनमानस के सर्वजनहितकारक निर्णय की प्रतीक्षा सदैव बनी रहेगी….
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शिवदेव आर्य

Name : Shivdev Arya Sampadak Arsh-jyoti: Shodh Patrika Add.- Gurukul Poundha,Dehradun, (U.K.)-248007 Mobi.-08810005096 e-mail- [email protected]