लघुकथा

लघुकथा : परिश्रम का फल

छोटेलाल अपने गाॅव में गरीबों में गिने जाने वाले एक सीधे इंसान थे।उनकी पत्नी मुन्नी देवी तथा एक सात साल का लड़का उनके परिवार में थे। छोटेलाल बहुत ईमानदार थे इसलिए सभी गाॅववालें इनसे खुश रहते है और ये गरीबों के नेता भी थे अगर किसी को कोई भी परेशानी होती तो ये उसे अपनी परेशानी समझकर दूर करते थे।इसी कारण से कुछ लोग इनके कट्टर दुश्मन थे।

छोटेलाल की पत्नी गर्भ से थीं।कुछ दिनों बाद मुन्नी देवी ने एक बालक को जन्म दिया, इसका नाम राकेश रखा गया, तथा खूब खुशियाँ मनाई गई। राकेश जब छः महीने का ही हुआ था कि लोगों ने इस मासूम बच्चे से इसके पिता को छीन लिया। छोटेलाल के न होने पर जमीदार लोगों ने इनसे इनका खेत भी छीन लिये।मुन्नी देवी पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। इन सब से परेशान होकर अपने दोनों बच्चो को लेकर गाॅव छोड़कर शहर चली गई, और एक सेठ के यहां घर का काम करने लगीं तथा सेठ का खेत भी था तो वह उसी मे गुजारा करने लगीं और दोनों बच्चो को पढ़ाने लगीं।

कुछ दिनों तक सब ठीक चला किंतु कुछ दिन बाद सेठ बेमतलव के पैसे काटने लगा विरोध करने पर उनको निकाल देने की धमकी देता मुन्नी देवी के बच्चे भी अब समझदार हो गये थे उनहे भी बहुत बुरा लगता था जब सेठ उनके पैसे काट लेता था। उनके बच्चो ने ये ठान लिया था कि कुछ ऐसा करना है कि हमारा परिवार भी चैन से रह सके।

एक दिन समय आ गया जब बड़े लड़के को मेट्रिक पास कर एक कंपनी में नौकरी मिल गयी, वह अपने काम पर ही ध्यान देता था तथा छुट्टी भी देर से करता था उसकी वजह से कंपनी का काफी नाम हो गया। उसे बहुत सारे प्रमोशन मिलें।आज इनके पास किसी चीज की कमी नही हैं तथा कंपनी मालिक ने इनके कहने पर इनके गाॅव मे एक फैक्टरी खोली जिससे गाॅव वालों को रोजगार मिला।

आज वे सब लोग लज्जित थे जो इनकी निन्दा करते थे। इन्होंने दिखा दिया कि इंसान जो ठान ले उसे करके दिखता है।

दयाल कुशवाह

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