कविता

‘क्या खोया, क्या पाया’

साँसों की डोर जब,

छोडने लगती है तन का साथ

याद आने लगता है बीता कल

मन लगाने लगता है हिसाब

क्या खोया क्या पाया

 

खुलने लगती फिर

पन्ना दर पन्ना उन

खोये बीते लम्हों की

जीवन रूपी किताब

 

अंतर्तम मेँ जगने लगता

इक अनुठा सा अहसास

अब तक जीवन यूँ ही गँवाया

बहुत कुछ खोया

नही कुछ पाया

 

दुर्लभ तन, ये मानव जीवन

पाकर भी, रे! मना, तूने

कीमती समय को नही

सही राह पर लगाया

 

सब कुछ किया जीवन में

पर बस खुद को ही, ना

जाना, ना खोज पाया

 

अंत समय जब आया, तो

बस खालीपन का अहसास

ही तो तेरे हाथ आया

 

अब सोचे क्या मुर्ख प्राणी

कर ली तूने अपने मनमानी

अब तो मृत्यु ने तुझे,तुझसे

ही छीन लेने की है ठानी

शशि शर्मा 'ख़ुशी'

नाम- शशि शर्मा 'खुशी'...जन्मतारीख - 6/6/1970 .... जन्म स्थान- सिलारपुर (हरियाणा) व्यवसाय - हाऊसवाईफ मूल निवास स्थान हनुमानगढ (राजस्थान) है | पतिदेव श्री अरूण शर्मा, की जॉब ट्रांसफरेबल है सो स्थान बदलता रहता है | पढने का बेहद शौक है,,,, अब लेखन भी शुरू कर दिया है | कुछ विविध पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कवितायें प्रकाशित हो चुकी हैं |

4 thoughts on “‘क्या खोया, क्या पाया’

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

    • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

      हार्दिक आभार विजय जी, सराहने के लिये |

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सत्य कथन
    सार्थक लेखन

    • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

      हार्दिक आभार विभा दी, आपके इस स्नेह व उत्साहवर्धन के लिये |

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