शीर्षक मुक्तक, उजाला/प्रकाश/रोशनी ..
आज उजाले भी रास नहीं आते
गुम जिंदगी उल्लास नहीं भाते
ढूढती बहूत गहरे उतर खुद को
हाथ लगते पर पकड़े नहीं जाते ||
महातम मिश्र
आज उजाले भी रास नहीं आते
गुम जिंदगी उल्लास नहीं भाते
ढूढती बहूत गहरे उतर खुद को
हाथ लगते पर पकड़े नहीं जाते ||
महातम मिश्र