ऑफिस का वो दिन
मेरे ऑफिस का वो पहला दिन था बड़ा ही यादगार,
अनजान थे सभी हमसे और हम भी थे उनसे अनजान,
मैने परिचय पत्र में लिखा था अपनी पसन्द में कबिता और शायरी,
देखते ही मैड़म बोली पाण्डेय कुछ हमे भी सुना देते अपनी शायरी.
मैने थोड़ी राहत की साँस ली और अपनी कबिता उन्हें सुनाई
तब तक एक बोल उठा पाण्डेय ये शायरी करना छोड़ दे इससे होती है हर जगह बुराई,
मै कुछ बोलता इससे पहले मैडम खुद ही बोल पड़ी
तुमने कैसे कहा शायरी को बुरा क्या तुम्हे इस बात की अंदाज है
महफ़िल हो चाहे लाखो प्यार करने वालो की
पर उसमे रौनक लाते इनके जैसे शायरो की ही अल्फाज है..
सुन कर उनकी बाते वो हका बका रह गया
सायद मन ही मन वो बुरा भला भी मुझे कह गया…