गीतिका : श्री कृष्ण
पूर्णपरात्पर भगवान श्री कृष्ण का अवतार आज से ठीक 5343 वर्ष पूर्व रोहिणी नक्षत्र में भाद्रपद मास की अष्टमी 18 जुलाई 3228 ईसापूर्व हुआ था तथा ठीक 126 वर्ष 5 माह पश्चात् उन्होंने दि. 8 फरवरी 3102 ईसापूर्व को नश्वर शरीर की लीला संवरण कर ली थी। उनको महाकवि श्री व्यास ने महाभारत एवं श्रीमद् भागवत में गाया, प्रियदर्शी जी महाराज ने श्रीकृष्ण चरित मानस एवं गीता भक्तियोग दर्शन, भक्तवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने ‘श्रीकृष्ण’ में, श्री विजय कुमार सिंघल ने ‘शान्तिदूत’ नामक उपन्यास में एवं डाॅ. नताशा अरोड़ा ने ‘हिडिम्बा’ नामक उपन्यास में जमकर उनके बारे में लिखा। तथापि आज एक गजल उन्हीं श्रीकृष्ण से प्रश्न करते हुए आह्वान करते हुए समर्पित है-
हे कृष्ण तुम्हें लोग समझ क्यों नहीं पाते?
‘निर्मोही’ भी कहकर तुम्हें क्यों कर न अघाते?
अवतार हुआ जेल में गोकुल में पले फिर
अधरों से लगा वंशी ब्रजधाम नचाते
आंगन में यशोदाके नंद बाबा के कांधे
ऊखल में बंधे रोये तो माखन भी चुराते
तुम चीर हरण करके जा बैठे कदंब डार
संग गोपियों-राधा के महारास रचाते
अक्रूर संग कंस से मथुरा में मिले तुम
बलराम सहित चल दिये गोकुल को रुलाते
मारा ही नहीं कंस को कुबरी को उबारा
जाने के लिए ब्रज को ऊधौ को सिखाते
रणछोड़ भी कहलाये मुचकुंद की खातिर
हो अन्त बुराई का भला कैसे बताते
शिशुपाल का वध तुमने किया सबके सामने
धारी हो तुम्हीं चक्र सुदर्शन के दिखाते
अवतार जगत में हुए ईश्वर के अनेकों
पर पूर्ण परात्पर हो तुम्हीं, सब यही गाते
हो कर्म की चर्चा जहां ईश्वर भी है बेबस
सच्चाई है ये तुम भी इसे शीश झुकाते
तुम दूत बने शान्ति के इतिहास की खातिर
प्रारब्ध के लिक्खे को भला कैसे मिटाते
अर्जुन के लिए तुमने घटोत्कच की बलि ली
ये राज कभी भीम-हिडिम्बा को सुनाते
तुमको तो हिडिम्बा ने क्षमा कर भी दिया था
पर बोध से अपराध के क्या खुद को बचाते
तुमने तो सुदामा को भी सीने से लगाया
मैं भी पड़ा चरणों में हूं क्यों कर न उठाते?
हों या न हों कमियां कई बाकी हैं मुझी में
ऐ काश ! मुझे कृष्ण भी अर्जुन सा बनाते।
मैं ‘शान्त’ हूं, खामोश हूं, अब मौन भी हूं
एकान्त में श्रीकृष्ण स्वयं ध्यान में आते
— देवकी नन्दन ‘शान्त’
बहुत सुंदर ! जयश्रीकृष्ण !!