बारिश की बूंदें मन को स्पर्श कर रही हैं
बारिश की बूंदे मन को स्पर्श कर रही है,
लगता है वह भी भीड़ में अपनों से बिछड़ रही है
कोमल पत्तों से लुढकती बूंदे,
अपनी जिन्दगी को बखुबी जी रही है
कंही दूब पर ठहरी कुछ बूंदे,
अपना वजूद तलाश रही है
सीमट रही है जमीं में जैसे,
जमीं को जीवित कर रही है
हर पल ये बूंदें कुछ करतब दिखाती,
मस्ती में नंगे तारों पर झुल रही है,
बारिश की बूंदे पत्तों पर ठहर कर,
पेड़ के तने को तृप्त कर रही है,
सागर में गिरती बारिश की बूंदे,
उसके अरमान को पुरा कर रही है,
सिढि़यों से फिसलती ये बूंदें,
किसी झरने का अहसास करा रही है,
सावन में हर तरफ अपने समाज को देख,
ये बूंदे इठलाती घुम रही हैं,
रंग नहीं इन बूंदों का फिर भी,
ये हर रंग में समा रही है,
बदन पर गिरती ये बूंदे,
शितलता का अहसास करा रही है,
बारिश में बिजली और बादल कौन देखता है?
ये बरसती बूंदें ही बारिश का वजूद बता रही है,
……. नितिन मेनारिया
कविता के भाव अच्छे हैं लेकिन तकनीकी दृष्टि से कमज़ोर है। लय गति कहीं है ही नहीं और वर्तनी की बेशुमार ग़लतियाँ हैं।
बूंदो की हर क्रिया को दर्शाती रचना
आपका हार्दिक आभार ………