बेवफा से वफ़ा
मिट्टी भी जमा की,
और खिलौने भी बना कर देखे…
ज़िन्दगी कभी न
मुस्कुराई फिर बचपन की तरह…
………
जीते है कुछ लोग इस तरह, मरकर भी अपना असर छोड़ जाते है
पा लेते है मंजिल को और ज़माने के लिए डगर छोड़ जाते है ।।
…….
मैं शिकायत क्यों करूं, ये तो किस्मत की बात है
तेरी सोच में भी नहीं मैं, मुझे लफ्ज लफ्ज में तू याद है
……
लिख दूं “किताबें” तेरी
इश्क में फिर डर लगता है
कहीं हर कोई तुझे पाने का
तलबगार ना हो जाये. .!!!!
…….
वो रूठे तो सही हम मनाने का वादा करते है,
दिल तोडना है मेरा तो बेशक तोड़ दे वो …….
इस दिल के बिना भी हम उनको चाहने का वादा करते है
…….
आँख उठाकर भी न देखूँ, जिससे मेरा दिल न मिले,
जबरन सबसे हाथ मिलाना, मेरे बस की बात नहीं !!!!!
सुंदर सोच की अच्छी प्रस्तुति