गजल
फ़िलबदीह की ग़ज़ल
बहर ~2122 2122 2122 212
काफ़िया ~आना
रदीफ़~~चाहिए।
वक्त हो कैसा भी हमको मुस्कुराना चाहिए
राह में मुश्किल बहुत है ये छिपाना चाहिए ।
लोग ताने दे रहे हैं तेरे जाने का मुझे
देख के हालत मेरी अब लौट आना चाहिए।
आ गए थे जिंदगी में वो अचानक एक दिन
हो गए गर दूर तो सबसे छुपाना चाहिए ।
दोस्ती में हर कदम पर आती है मुश्किल बड़ी
त्याग कर के लोभ को, यारी निभाना चाहिए
हो तिमिर का बोल बाला तुम कभी सहमो नहीं
हौसलों की लौ से दीपक को जलाना चाहिए।
बेटियों के जन्म पर आँसू बहाते क्यों भला
हैं बुढ़ापे का सहारा, इनको जन्माना चाहिए ।
झांक कर क्यों देखना लोगों के मन में क्या छुपा
अपनी धुन में मस्त हो बस गीत गाना चाहिए।
— धर्म पाण्डेय
सुंदर रचना