गजल
100 वी फ़िलबदीह की ग़ज़ल
बहर~~2122 2122 212
काफ़िया ~अत
रदीफ़ ~दोस्तों
एक मीठी सी शरारत दोस्तो
याद आती है मुहब्बत दोस्तो
लौट आये वो मेरे पहलू में क्यों
थी जिन्हें हमसे अदावत दोस्तो
मारते हो बेटियाँ क्यों कोख में
है बड़ी अनमोल दौलत दोस्तो
टूट कर पत्ता गिरा है साख से
आंधियों की थी सियासत दोस्तो
झूठ धोखा पाप मक्कारी बड़ी
जुल्म की खेती सियासत दोस्तो
तोड़ते थे दिल मेरा जो रात दिन
दिल ये उनको की वसीयत दोस्तो
प्राण पंक्षी उड़ गया जाने किधर
काम ना आई ये ताकत दोस्तो
झूठ का तेरे हुआ रौशन जहाँ
बुझ गई मेरी हकीकत दोस्तो
चाहते थे धर्म हासिल ना हुआ
जिंदगी से है नदामत दोस्तो
धर्म पाण्डेय