गज़ल
ख़ामोशी से दुआ करो तो खुदा सुन लेता है
उसका दिल मेरी आँखों की सदा सुन लेता है
तुम खोल के तो देखो कफ़स के दरवाज़े
मंज़िल का पता खुद परिंदा चुन लेता है
सर झुकाकर पहन लिया करो उसे रूह में
माँ का दिल लिबास के साथ दुआ बुन देता है
गेहूँ की लहलहाती बालियों पर चमके तो
सूरज की किरण आना ज्यादा सुकून देता है
तुम्हें अपने में लपेट कर लाता है शायद
मेरी ग़ज़ल को झोंका सबा का धुन देता है
अनिता
nice
शुक्रिया सूर्यनारायण प्रजापति जी
उत्तम गजल !
आभार विजय कुमार सिंघल जी
अति सुंदर रचना
आभार विभा जी