गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

ख़ामोशी से दुआ करो तो खुदा सुन लेता है
उसका दिल मेरी आँखों की सदा सुन लेता है

तुम खोल के तो देखो कफ़स के दरवाज़े
मंज़िल का पता खुद परिंदा चुन लेता है

सर झुकाकर पहन लिया करो उसे रूह में
माँ का दिल लिबास के साथ दुआ बुन देता है

गेहूँ की लहलहाती बालियों पर चमके तो
सूरज की किरण आना ज्यादा सुकून देता है

तुम्हें अपने में लपेट कर लाता है शायद
मेरी ग़ज़ल को झोंका सबा का धुन देता है

अनिता

6 thoughts on “गज़ल

  • सूर्यनारायण प्रजापति

    nice

    • अनीता मण्डा

      शुक्रिया सूर्यनारायण प्रजापति जी

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्तम गजल !

    • अनीता मण्डा

      आभार विजय कुमार सिंघल जी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

    • अनीता मण्डा

      आभार विभा जी

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