देहरादून पुस्तक मेला जारी, समापन 20 सितम्बर को
ओ३म्
देहरादून में 12 सितम्बर, 2015 से आरम्भ हुआ ‘‘देहरादून पुस्तक मेला” अब पूरे यौवन पर है। यह मेला रविवार 20 सितम्बर, 2015 तक चलेगा। मेले में बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं और भिन्न भिन्न प्रकाशकों व संस्थाओं का साहित्य पसन्द कर रहे हैं व उसे क्रय भी कर रहे हैं। रविवार 13 सितम्बर, 2015 को पुस्तक मेले में बहुत अधिक संख्या में लोग पधारे। मेले में भिन्न भिन्न प्रकाशकों ने अपने भव्य स्टाल लगाये हुए हैं। पुस्तकों पर 10 प्रतिशत की सामान्य दर से छूट भी दी जा रही है। मेले में एक प्रकाशक तो अपने स्टाल की पुस्तकों को आधे मूल्य और फिर उस आधे मूल्य पर भी 10 प्रतिशत की छूट दे रहे हैं और आने वाले प्रत्येक आगन्तुक को मौखिक रूप से इस विषय में बार बार बताते रहते हैं जिससे कि आगन्तुक कुछ पुस्तकें अवश्य खरीदें। उनकी यह बातें मेले में उनके स्टाल पर आये लोगों को प्रभावित भी करती लग रही हैं। मेले में दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली द्वारा लगाये गये वैदिक साहित्य के स्टाल पर हमें आज कुछ घंटे बैठने का अवसर मिला। इस अवधि में हमने देखा कि बहुत से लोग स्टाल पर आ रहे हैं। पुस्तकों को उठाते हैं आगे पीछे से उसे देखते व यत्र तत्र पुस्तक से कुछ पढ़ते हैं।
कुछ युवक ऐसे भी आये जो वेद भाष्य के चार भागों में सेएक भाग लेना चाहते थे। उन्हें जब चारों भाग लेने का परामर्श दिया गया तो उन्होंने कहा कि अन्य खण्ड उनके पास उपलब्ध हैं। फिर उन्होंने उपनिषदों की चर्चा की और महात्मा नारायण स्वामी रचित 11 उपनिषदों की टीका क्रय की। एक युवक सज्जन ऐसे भी आये जिनका मित्र वेदों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का इच्छुक था। इसकी मोबाईल फोन से बात कराई गई और उसे सभी इच्छित जानकारी दी गई। सहारनपुर के एक सज्जन ऐसे भी आये जिन्होंने अनेक पुस्तकें क्रय की और आर्यसमाज के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अपना इमेल पता भी नोट कराया और उस पते पर उन्हें लेख आदि सामग्री भेजने के लिए निवेदन किया।
स्टाल पर बैठकर नाना प्रकार के अनुभव होते हैं व हमें भी हुए। हमने अनुभव किया कि स्टाल पर एक आर्यसमाज का विद्वान हर समय उपस्थित होना चाहिये जो आगन्तुकों का प्रेमपूर्वक स्वागत करे और उनको प्रमुख साहित्य यथा सत्यार्थ प्रकाश आदि का परिचय दे। विगत 4 दिनों में स्टाल पर पधारे पुस्तक प्रेमियों जिनमें मुख्यतः युवक व युवतियां अधिक थी, का पुस्तक प्रेम देखकर यह अनुभव हुआ कि अधिकांश आर्यसमाज व आर्य प्रकाशकों को अपने भव्य स्टाल पुस्तक मेलों में लगाने चाहियें। साहित्य की बिक्री एक बात है तथा लोगों का आर्य समाज के स्टाल पर आना और पुस्तकों व सिद्धान्तों आदि से परिचय प्राप्त करना दूसरी मुख्य बात है जो प्रचार से जुड़ी है। हमने यह भी अनुभव किया कि कुछ प्रचार साहित्य भी स्टाल पर होना चाहिये जो आगन्तुकों को निःशुल्क दिया जा सकता है तथा जो प्रचार में काफी सहायक हो सकता है।
यद्यपि हम आर्य समाज के साहित्य में अधिक रूचि लेते हैं परन्तु अन्य प्रकाशकों के स्टालों पर जाने पर हमें अनुभव हुआ कि वहां अनेक विषयों की बहुत अच्छी पुस्तकें हैं जो हमें व आर्य समाज के विद्वानों को भी पढ़नी चाहियें। इसके विपरीत यह भी सत्य है कि वैदिक धर्म व अध्यात्म पर आर्यसमाज व वैदिक संस्थाओं का जो साहित्य उपलब्ध होता है, गुणवत्ता में वह बात और प्रभाव अन्य प्रकाशनों में यत्र तत्र ही सुलभ होता है। कुल मिलाकर पुस्तक मेला रफ्तार पकड़ रहा है और अभी तक का अनुभव मधुर व उत्साहवर्धक रहा है।
–मनमोहन कुमार आर्य
पुस्तक मेले वास्तव में बहुत उपयोगी होते हैं. वहां ऐसी पुस्तकें भी मिल जाती हैं जिनको बाज़ार में खोजना लगभग असंभव है.
आपने स्वयं वैदिक साहित्य के स्टाल पर बैठकर पाठकों की सहायता की और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया यह जानकर बहुत प्रसन्नता है. आपका कार्य अनुकरणीय है.
नमस्ते एवं धन्यवाद श्री विजय जी। आपने ठीक कहा है कि पुस्तक मेलो में ऐसी बहुत सी पुस्तकें मिल जाती है जो प्रायः बाज़ार में आसानी से नहीं मिलती। मुझे भी ऐसी अनेक पुस्तकें मिली हैं व मैंने व साथियों ने उन्हें लिया है। मुझे लगता है कि आजकल पुस्तकें कुछ अधिक महँगी हो गई है। हर व्यक्ति के वश में मूल्य अधिक होने के कारण प्रत्येक इच्छित पुस्तक खरीदना संभव नहीं है। इसलिए इच्छा होने पर भी बहुत सी पुस्तकें खरीदना संभव नहीं है। पुस्तक मेले में आने वाले जिज्ञासुओं का सही मार्गदर्शन करने में मन संतुष्ट होता है। कुछ लोगो से मिलकर व बातें कर बहुत अच्छा लगा। आपकी सहृदयता एवं प्रेम के लिए आपका धन्यवाद।
अच्छी जानकारी
धन्यवाद आदरणीय बहिन ही। मैं आज भी पुस्तक मेले में गया। मेरे साथी एक गुरुकुल के आचार्य ने विभिन्न स्टालों से लगभग ३-४ हजार रुपयों का साहित्य ख़रीदा। मैंने भी कुछ ख़रीदा। मुझे जीवन में पहली बार यह पुस्तक मेला बहुत ही उपयोगी एवं सार्थक लग रहा है। पुनः धन्यवाद।