गीतिका/ग़ज़ल

गजल

तेरी आँखों के दरिया का उतरना भी जरूरी था
मुहब्बत बोझ लगती थी बिछड़ना भी जरूरी था ।

अवारा नाम तूने रख दिया था प्यार में मेरा
तेरी चाहत में फिर मुझको सुधरना भी जरूरी था ।

मुहब्बत में दिखाए थे मुझे जो प्यार के सपने
तेरी बातों के जादू से निखरना भी जरूरी था ।

जुदा हो भी गए तो याद ना आना कभी मुझको
मुहब्बत थी बड़ी गहरी मुकरना भी जरूरी था ।

तेरी तस्वीर को आँखों से भला कैसे निकालू मैं
धर्म अनमोल आँसू का ठहरना भी जरूरी था ।

— धर्म पाण्डेय

One thought on “गजल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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