गजल
तेरी आँखों के दरिया का उतरना भी जरूरी था
मुहब्बत बोझ लगती थी बिछड़ना भी जरूरी था ।
अवारा नाम तूने रख दिया था प्यार में मेरा
तेरी चाहत में फिर मुझको सुधरना भी जरूरी था ।
मुहब्बत में दिखाए थे मुझे जो प्यार के सपने
तेरी बातों के जादू से निखरना भी जरूरी था ।
जुदा हो भी गए तो याद ना आना कभी मुझको
मुहब्बत थी बड़ी गहरी मुकरना भी जरूरी था ।
तेरी तस्वीर को आँखों से भला कैसे निकालू मैं
धर्म अनमोल आँसू का ठहरना भी जरूरी था ।
— धर्म पाण्डेय
अच्छी ग़ज़ल !