हिन्दी बचाओं
मर रही हू आज जर्र जर्र
मैं अपने ही घर में
घट रहा है मान मेरा
मेरे अपने वतन में
देखकर भी अनदेखा
मुझे किया जाता है
मेरा अपना असतित्व ही
अब मुझसे शर्माता है
भले मैं हू रज रज में बसी
पूरे भारतवर्ष के
मगर नही अब मेरी कदर
न ही अपने बस के
न मेरे नाम पर दाखिले
ना ही कोई नौकरी
न ही सरकारी काम काज
रह गई नाम की खोखली
सिर्फ नाममात्र का कद मेरा
जो मुझे है झेलना
अंग्रेजी के आगे हरदम
होती मेरी अवहेलना
हर कोई अपने स्वाभिमान को
बस अंग्रेजी में ढालता है
मेरे मर्म को रोंदकर
अपना अस्तित्व पालता है
गुलामी की जंजीरे
आज भाषा के रुप में है
नही समझती अंधी व्यवस्था
ढलती जा रही विदेशी स्वरुप है
समय है अब भी संभाल लो
न होने दो मुझे तुम और लुप्त
मैं राष्टभाषा कहलाती हू
कर दो मुझे अपनाकर तृप्त
शुक्रिया सर
राष्ट्र भाषा हिंदी के प्रति कवित्री बहिन की उच्च एवं श्रेष्ठ, प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय भावनाएं। आपको ह्रदय से वंदन है।
जवाब देरी से माफी चाहती हू।सह्रदय आभार आपका आदरणीय
धन्यवाद बहिन जी।
बढ़िया !
मैंने बिदेस में रह कर भी बच्चों को मातर भाषा पंजाबी सिखाई है और हिंदी की फ़िल्में अच्छी तरह समझ लेते हैं . एक रिश्तेदार मुम्बई से अपने बच्चों के साथ यहाँ आये .उन के बच्चे और उन की माँ इंग्लिश बोलती थी और मेरे बच्चे पंजाबी में जवाब देते थे . सुबह उठ कर उन्होंने हम से मुआफी मांगी और कहा कि वोह शर्मसार महसूस कर रहे हैं .
भाई साहब, इस बिरादरी के लोग भारत में कम नहीं हैं.