ग़ज़ल : मौत बेहतर है जुदाई की सजा से
दिल थामकर जाते है हम जब भी राहे वफ़ा से,
ख़ौफ़ लगता है हमे तेरी आँखों की खता से
जितना भी मुमकिन था हमने सहा तुम्हारा गम,
अब दुआ करो शायद दर्द भी लौट जाए दुआ से
हम बुरे नहीं तो अच्छे ही कहाँ हैं और कहाँ थे,
दुश्मनो से जा मिले है हम तुम्हारी वफ़ा से
आप दफ़न ही कर देती हमे आगोश में लेकिन
सच कहु तो मौत बेहतर है जुदाई की सजा से.
बहुत खूब अखिलेश जी.
अच्छा लिखा..
बस एक शेर और जोड़े
जिसमें आपका नाम आये
बेहतरीन ग़ज़ल