टूटे रिश्ते
आज भी मोतियों से आंसू
आंखों से फिसल जाते हैं अक्सर!
रिश्ता जो उलझे हुये मांझे
की तरह कभी नहीं सुलझता अक्सर !
आ जाता अहम बीच में या
ऐतराज ए मुहब्बत छूटने में अक्सर !
बड़ी बेसकूंन सी हो जाती जैसे
नाखूनों से खुरचती दर्दे रूह अक्सर !
भावनायें चढ़ती उतरती पारे सी
छवि तो है नजारों में कहीं नहीं अक्सर !
अपने टूटे रिश्तों को दूसरों में
खोजते बड़ी लाचार हंसी हंसते हम अक्सर !
टूटे-छूटे न वक्ति थपेड़ों से भी
बुने कच्चे धागे से अपनत्व ऐसा अक्सर !
— गीता यादव
सत्य कथन
सुंदर रचना