कविता

टूटे रिश्ते

 

आज भी मोतियों से आंसू
आंखों से फिसल जाते हैं अक्सर!

रिश्ता जो उलझे हुये मांझे
की तरह कभी नहीं सुलझता अक्सर !

आ जाता अहम बीच में या
ऐतराज ए मुहब्बत छूटने में अक्सर !

बड़ी बेसकूंन सी हो जाती जैसे
नाखूनों से खुरचती दर्दे रूह अक्सर !

भावनायें चढ़ती उतरती पारे सी
छवि तो है नजारों में कहीं नहीं अक्सर !

अपने टूटे रिश्तों को दूसरों में
खोजते बड़ी लाचार हंसी हंसते हम अक्सर !

टूटे-छूटे न वक्ति थपेड़ों से भी
बुने कच्चे धागे से अपनत्व ऐसा अक्सर !

— गीता यादव

गीता यादव

, निवासी दिल्ली

One thought on “टूटे रिश्ते

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सत्य कथन
    सुंदर रचना

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