उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-26: ब्लैक कार

एक घने जंगल में अचानक एक कार आती है कार की वजह से वहाँ पड़े पत्ते सरसराहट के साथ उड़ने लगते हैं कार में स्नेहा तथा
रूपाली बैठे हैं स्नेहा ड्राइव कर रही है तभी एक जगह पर कार रूकी और स्नेहा ने उतरकर देखा तो पास में एक पेड़ के नीचे पत्थर पर सफेद निशान बना था स्नेहा ने पत्थर उठाया और पैसों से भरा बैग उस पत्थर के नीचे रख दिया और ऊपर से पत्थर से ढक दिया फिर कार में बैठकर वहाँ से चली गयी।

तभी पेड़ से एक आदमी उतरा और मोबाइल निकालकर एक नंबर डायल किया उधर से आवाज आयी काम हो गया तो उस आदमी ने हाॅ कहा और वहां से कुछ दूर पर चला गया।

थोड़ी देर बाद वहां एक ब्लैक कार आकर रूकी उसमें से एक आदमी निकला और पेड़ के नीचे से बैग उठाकर अपनी कार के ऊपर रखा और बैग खोला बैग नोटों की गड्डियों से भरा हुआ था उस आदमी ने एक गड्डी उठायी और नाक से लगाकर बोला इन नोटों की खुशबू ही ऐसी होती है कि कोई भी इसके लिये कुछ भी कर जाये और फिर बैग बंद कर गाड़ी में रखकर उस आदमी के पास गया और उसे कार में बैठाकर वहाँ से चले गये।

स्नेहा समीर को पूरी तरह भूल चुकी थी पर रूपाली को अभी भी डर था क्योंकि सारे फोटोग्राफ्स तो अभी भी समीर के पास थे।

आज स्नेहा को किसी काम से कहीं जाना था इसलिए उसने रूपाली को फोन किया कि आज मैं लेट आऊंगी रूपाली से उसने मेल्स चैक करने को भी कहा था तभी उसने मेल्स चैक की उसमें एक मेल समीर की भी थी उसमें लिखा था स्नेहा जो तुमने पैसे दिये थे सोचा उसे किसी बिजनेस में लगाऊंगा पर क्या करे पैसा चीज ही ऐसी है खत्म हो जाते हैं इसलिए तुम्हें फिर परेशान किया है इस बार मुझे बीस लाॅख रूपये चाहिये तब तक स्नेहा भी आ चुकी थी रूपाली ने वह स्नेहा को दिखाया स्नेहा की आंखें खुली की खुली रह गयीं रूपाली ने मेल का रिप्ले किया उसने कहा हमने अभी तो तुम्हें पचास लाॅख दिये थे और तुमने कहा था अब पैसे नहीं मांगूगा तब उधर से रिप्ले आया क्या करू यार पैसा चीज ही ऐसी है जितना हो कम ही पड़ जाता है तब स्नेहा आकर कम्प्यूटर शीट पर बैठ गयी और उसने टाइप किया देखो समीर हमारे पास जितने पैसे थे हमने तुम्हें दे दिये अब हमारे पास नहीं है और तुम्हारे लिये तो बिल्कुल नहीं।

तब समीर का रिप्ले आया तो ठीक है मैं इन हसीन लम्हों को इंटरनेट पर डाल देता हूॅ तब स्नेहा ने कहा चलो ठीक है तुम्हें पैसे मिल जायेगें पर मुझे थोड़ा समय चाहिये समीर ने कहा ठीक है तुम्हें दस दिन दिये फिर स्नेहा ने पुलिस को बुलाया चूंकि पुलिस कमिशनर उसके अंकल थे इसलिए उसने उन्हें सारी कहानी बता दी अब उसके अंकल उस ब्लैकमेलर को पुलिस के साथ ढूंढने लगे।

दयाल कुशवाह

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