ग़ज़ल
रोका हमने दिल दीवाना बोल उठा
जल जल के कोई परवाना बोल उठा
जर्द किये थे जज्बातों को सीने में
गालों पर लाली का आना बोल उठा
सो जाते हैं कितने ही भूखे बच्चे
कूड़े पर फेंका वो खाना बोल उठा
साथ नहीं देते जब तुम तन्हाई में
मेरा साथी जाम पुराना बोल उठा
थक के जब भी वापस घर को आते हैं
माँ के आँचल में छुप जाना बोल उठा
मेहनत ताकत हिम्मत सबसे ऊँची है
खेतों में पैदा हर दाना बोल उठा
‘धर्म’ छुपाया तुमने तो अपने गम को
आँखों से आँसू का आना बोल उठा
— धर्म पाण्डेय