शब्द !
शब्द कभी चुभ जाते हैं ,कभी सहला जाते है ,कभी रुला जाते हैं ,कितने शब्द ! शब्दों की एक अपनी विस्तृत दुनियां है शब्दों के अपने अहसास हैं ,ख़ुशी के गम के प्रेम के असंख्य भावनाएं जुड़ी हैं शब्दों के साथ । जहां भावनाएं होती हैं वहां जीवन होता है पत्थर में तो भावनाएं नहीं होती इसीलिए तो वो पत्थर ही रहता है मगर शब्द अमर हैं जीवित हैं अपने असंख्य अहसासों को लिए हुए ।अपने अनोखे वजूद को लिए हुए भूत से वर्तमान तक एवं वर्तमान से भविष्य तक ।
प्रेम ,पीड़ा , झोभ ,आश्चर्य क्या नहीं व्यक्त करते ये । अनुभव राग बिराग ज्ञान सब इन्ही में तो ही निहित है जीवन से पहले और जीवन के बाद भी जो न मिट सका वो शब्द थे …वे शब्द जिन्हें हमने किसी को प्रेम उपहार के स्वरुप दिए वे मष्तिस्क पटल पर लिख जाते है अमिट हो जाते हैं ….शब्द जिनका प्रयोग पीड़ा पहुँचाने के लिए किया , वे आत्मा पर लिख जाते हैं, साथ जाते हैं तुम्हारे भी जिनको तुमने पीड़ा पहुंचाई और उनके भी साथ जिसे पीड़ा हुई ।
किसी हारे हुए के मन में उत्साह जगा देने बाले भी शब्द ही होते हैं किसी निराश मन पर जब शब्दों के पवित्र गंगाजल से छिड़काव किया जाता है तो हारा हुआ मन फिर से उठ खड़ा होता है अपना रास्ता ढूंढने के लिए उस पर चल पड़ने के लिए तत्पर हो जाता है तो क्या ये शब्दों का जादू नहीं है ….हाँ ये शब्दों का ही जादू है जो हारे हुए को उत्साह से भर दे इतिहास गवाह है हमारी गीता गवाह है भगवान कृष्ण और अर्जुन गबाह हैं इस बात के की शब्दों की ताकत कितनी अधिक होती है ।
यहां तक कि युद्ध क्षेत्र में भी योद्धाओं का मनोबल को उठाया जा सकता है मनोबल को तोड़ा जा सकता है, ये सब शब्दों ही की तो महिमा है की बच्चे बच्चे बूढ़े जवान सभी देश पर मर मिटने को तैयार हो जाते हैं ,देशभक्ति का जज्वा उफान लेने लगता है जब देश पर संकट की घङी आती है तब कोई धर्म कोई जाति ऊपर नहीं होती बस एक ही बात होती है एक ही जज्वा होता है और एक से ही शब्द भी होते हैं ।
कहते हैं प्रथम शब्द ॐ था वाकी शब्द बाद में उपजे और मानव जीवन और उनकी भावनाओं में रच बस गए जीवन जिए गए लोग आये चले गए लेकिन उनके शब्द आज भी उतनी ही शिद्दत से रूबरू होते हैं किसी भी महान रचना को पृष्ठ पृष्ठ पढ़ते चलने से न सिर्फ वो रचना जीवित हो जाती है बल्कि वो लेखक सामने उठ खड़ा हो जाता है ऐसे जैसे की हमसे रूबरू बातें कर रहा हो ऐसे जैसे की अपनी आपबीती जग बीती सुना रहा हो और समझा रहा हो कि यहीं हैं उसके जीवन अनुभव एवं यही है उसकी उत्कृष्ट रचना ।
इसीलिए शब्दों का प्रयोग ध्यान से किया जाना चाहिए चाहें इनसे प्रेम व्यक्त करें , भक्ति व्यक्त करें ,घृणा व्यक्त करें, उन्माद व्यक्त करें, अथवा अहंकार ही क्यों न व्यक्त करें ये शब्द अमर हैं आपके हैं, और बापस आप तक जरूर आएंगे तो क्यों न वातावरण में वही छोड़ा जाये जिसे हम स्वयं गृहण कर सकें न की वो जिसे हम स्वयं गृहण न कर सकते हों । अव्यक्त पर व्यक्त की विजयगाथा हैं शब्द ।
— अंशु