कविता

ये पतिदेव

उफ्फ्फ यह पतिदेव भी
क्या-क्या गज़ब ढाते हैं
शादी के कुछ वर्षों में ही
यह कितना बदल जाते हैं
पहले वर्ष में कहते
छोड़ो न काम काज को
चंद घडीयां तो आओ
मेरे पास बैठ जाओ
कुछ सुनो मेरी
कुछ तुम अपनी सुनाओ
बड़े प्यार से लाया हूँ गजरा
इसे अपने बालों में सजाओ
कोई तो करो फरमाइश
कहीं तो घूमने का
कोई प्रोग्राम बनाओ
किन्तु कुछ ही वर्षो में
इनकी सोच कितनी बदल जाती है
जो बाते लगती थी अच्छी
वो चुभने वाली हो जाती हैं
अब जब बैठो पास तो
यह भरम उनको खाता है
क्यों बैठी है यह पास मेरे
कोई नया प्रोग्राम तो नही बनाना है!
झल्लाकर तब कहते हैं
यहाँ क्या बैठी हो जाओ
कोई काम कर आओ
बैठकर यहाँ मुझे मत पकाओ
गर कोई नहीं है काम तो
ज़रा बढ़िया से पकोड़े बनाओ
सोचते है खाली है बैठी तो
कही घूमने का प्रोग्राम बनाएगी
गर रहेगी व्यस्त रसोई में
मेरा सर तो न खायेगी।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]