ग़ज़ल
दर्द में डूबी हुई मेरी कहानी किस लिए
मौत से बद्तर मेरी ये जिंदगानी किस लिए ।
जो किसी कमजोर का बनता सहारा है नही
नाम ऊँचा कर के बनता खानदानी किसलिए ।
मौन भी वाचाल होकर कर रहा सरगोशियाँ ।
आप हो जाओ मेरे ये दरमियानी किसलिए ।
आज भी हर शाम है खामोश चूल्हे गाँव में ।
बात करती है बड़ी , फिर राजधानी किसलिए ।
या खुदाया जिंदगी का गर यही अंजाम है ।
आत्मा को मुक्ति दो ये आनी जानी किसलिए ।
किस्मतों में जो लिखा उसका बदलना है कठिन ।
“धर्म” फिर ये जिंदगी में सावधानी किसलिए ।
— धर्म पाण्डेय
अच्छा लेखन
उम्दा गज़ल